पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३७४

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३५२ [प्रतापनारायण ग्रंथावली तो अपने समूह के अग्रगामी जी का छ: पैसे का फोटो तथा सड़ी सी चौपतिया तक अनादर को दृष्टि से देखना नापसंद करें पर हम से कहें कि तुम्हारे लाखों रुपए की लागत के मंदिरों में विराजित, वेदमंत्र द्वारा पूजित देव प्रतिमा तथा एक से एक मधुर कोमलकांतपदावलीपूर्ण सहस्रावधि विद्वानों के वर्षों के परिश्रम से निर्गत धर्मग्रंथ मिथ्या हैं. त्याज्य हैं, पोपों का जाल है। छिः ! ऐसे पक्षपात के पुतलों और आत्मप्रशंसकों को हम अपने हितैषी समझ लें ऐसे हमारी समझ पर कहाँ के पत्थर पड़े हैं ? यदि इन सूक्ष्म बातों तक बुद्धि न दौड़ती हो तो एक मोटा उदाहरण सुन लीजिए। इन दिनों देश में चारों ओर निर्धनता छाई हुई है। न कोई शिल्पकारों को पूछता है म क्रयविक्रयोपजीवियों को। ऐसी दशा में अपने दीनताग्रस्त भाइयों को कुछ सहारा पहुंचाना उन का हितान्वेषण है अथवा उन की रोटियों का हरण करने में सोद्योग रहना ? यदि दूसरी बात सत्व हो तो तो प्रतिमाद्वेषो सचमुच भारतहितैषी हैं पर यदि पहिली बात ठीक है तो जब हम एक छोटी सी शिवलिया बनाने का मानस करते हैं उसी दिन से कम से कम दो एक राज, दो चार मजदूर, जलवाहक, इंटवाले, चूनावाले, रंगसाज, संगतराश, माली, ब्राह्मण, हलवाई, दरजी, ठठेरे इत्यादि कई भाइयो को बरसों नहीं तो महीनो तक अवश्य सहारा मिलना आरंभ हो जाता है। फिर क्यों मानिएगा कि इस रीति से देशभक्ति का मार्ग खुलता है जिसे मूतिविरोधी रोकने में लगे हैं । वरंच उन की दृष्टि में यही देहितैषिता है कि इस बहाने भी देशवंधुगण का निर्वाह न होने पावै । यदि यही देशवत्सलता है तो धन्य है, शाबास है, बलीहारी है समझ के अजीर्ण को! खं० ८, सं० ८ ( मार्च, १० सं० ८) समझ की बलिहारी गत संख्या में हमने जो आर्यावर्तजी के पक्षपातपूर्ण लेख का उत्तर दिया था उसका उत्तर देने मे आप ने समझदारी का भंडार खोल दिया है ! वाह ! भला समझ हो तो इतनी तो हो कि दूसरा क्या कहता है और हम क्या कहते हैं ? 'ब्राह्मण' मे केवल देखी हुई वह बातें लिखी गई थी जिनकी साक्षी देने को सहस्रों विद्वान और प्रतिष्टित ब्राह्मण क्षत्रिय विद्यमान हैं । पर ईर्षा और पक्षपात के बस सहयोगी महाथय कुछ का कुछ विदित किया चाहते थे। हाँ, उसी के अन्तर्गत कुछ आर्यसमाज की करतूत भी दिखलाई गई थी जिसका खंडन करना और सच्ची घटना का मान लेना प्रत्येक समाजी का कर्तव्य था और है। किंतु यह न करके मापने "कही खेत की सुनै खलियान को" बाली कहावत का उदाहरण दिखाया है और इसी बुद्धिमानी पर "सूर्य" बनने का