पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३७८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३५४ प्रतापनारायण-पापी जिसे आपकी लेखनी भी सब मार के लिख हो गई है कि 'मिथ्या क्योंकर सकते हैं, पर कृपा करके इतनी बात और खोल देते कि 'पाखंड निरता सर्वे का क्या अर्थ है। हमने तो सुना है कि आर्यावर्त के एडिटर भी ब्राह्मण ही हैं। यदि यह बात सच है तो 'सर्वे' में वे भी शरीक हैं अथवा नहीं ? यदि इसी समझदारी पर हमारे आक्षेपों का उत्तर देना चाहते हो तो वृथा कष्ट काहे को करोगे, एक पोस्टकार्ड में हार मान लेने की आज्ञा लिख भेजो, बस छुट्टी है। हम लोग सिद्धांती हैं, ऐसे मित्रों का हुक्म मानने में कभी इनकार नहीं कर सकते । जान पड़ता है कि आप ने 'ब्राह्मण' का लेख समझा क्या पढ़ा भी नहीं है नहीं तो उसके सम्मादक ( प्रताप मिश्र ) का धर्म मंडल सम्बन्धी व्यास्थान दान बांबते और तनिक भी धर्म का अनुका होता तो निश्चय अपने सम्बाद- दाता के लेख को मिथ्या पक्षपात से भरा और बालक्रोड़ा ही मान लेते। और आप न माने तो भी क्या हानि है । बिप्त बात को सच्चाई के शाक्षो दस सहस्र लोग हैं वुह आप के तथा भवदीय सम्वाददाता के झुठलाने से कभी झूठी हो सकती है ? क्या आप को झूठ की लत पड़ गई है ? 'ब्राह्मण' ने 'विचार' करने के लिए 'दूसरों का आश्रय' कब लिया है ? और आर्यावर्त के साथ 'विचार' करने में कब बन्द है ? पर आर्यावर्त पहिले आर्योंचित 'सभ्य रीति' के नियम तो स्थिर करे। आगे चल कर आपने हमारे सनातन धर्म में द्वेष को शिक्षा सिद्ध करके अपने गुरुदेव तथा हमारे माननीय फकीर श्री स्वामी जी के सत्यार्थप्रकाश के बराबर बनाने की मनसा में 'कृष्णदेवं परित्यज्य योऽन्य- देवमुपासते' इत्यादि चार पांच श्लोक उदाहरण स्वरूप लिन दिखाए हैं । पर ऐसे लिचर आक्षेपों का उचित उत्तर बीसियों बार बीसियों विद्वान दे चुके हैं अतः हम व्यर्थ अपना पत्र रंगना नहीं पसंद करते । हां, 'आर्यावर्त जो की इच्छा हो तो ऐसे २ बहुत से बचन ढंढ़ रक्खें, हम किसी बालक से दंतत्रोटक उत्तर दिला देने की प्रतिज्ञा लिखे देते हैं । इस अवसर पर हम इतना ही उपदेश दे देना उचित समझते हैं कि यदि सचमुच आर्यधम्म- तत्व समझ के उसका स्वाद प्राप्त करना हो तो हमारे ही मूलमंत्र को कुछ दिन जपिए तो चित्त शुद्ध हो जायगा और पुराणों का यह गूढार्थ विदित हो जायगा कि अनंत रूप गुण स्वाभावादि संपन्न प्रेमदेव एक ही हैं। उन का भजन जो कोई जिस रीति से सरल निश्चल एवं अनन्य भाव के साथ करता है वह अपनी इच्छानुसार उस आनंद को प्राप्त होता है जिस के आगे मतवालों की मुक्ति नर्क से भी अधिक घिनौनी है। राम, कृष्ण, शिव, दुर्गादि नाम रूप लोला कैसी ही क्यों न प्रकाश करें पर वास्तव में सर्वथा एक हैं । इसके उपरांत आपने प्रयोजनीय बात कोई न लिख कर केवल हमेशा की आदत के अनुसार शेखी बघारी है, जिस का उत्तर देना उन्ही की सी प्रकृति बालों का काम है न कि हमारा । पर क्या कीजिए, वह लड़ना ही पसंद करते हैं, अतः हम भी समझाए देते हैं, समझ हो तो समझ रखें कि परमेश्वर न करे कहीं उन के कथनानुसार आर्य- समाज वालों को सी समझ सबकी हो जाय तो आज काशी मथुरादि सैकड़ों नगर नष्ट हो जायें, सहस्रों देशभाइयों की रोटो हर जायं, लाखों कुलांगना पातिव्रत के साथ २