पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३८३

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अवतार लेना वा आविर्भाव करना किसी वस्तु अथवा व्यक्ति के प्रकटित होने को कहते हैं। यथा 'मनुज रूप है अवतरथो हरि सुमिरन के हेत' और 'सोरह सौ अट्ठावना कातिक सुदि बुधवार । रामचन्द्र की चन्द्रिका तव लीन्हो अवतार' इत्यादि बहुत से वाक्य प्रसिद्ध हैं। पर इस देश के साधारण लोग बहुधा इस शब्द से मत्स्य कच्छपादि भगवदावतार हो का बोध करते हैं और देशी तथा विदेशी अन्य मत वाले जन कई एक युक्तियों से यह बात सिद्ध करना चाहते हैं कि ईश्वर का अवतार नहीं हो सकता। किंतु समझदार लोग हमारे इस लेख से विचार कर सकते हैं कि ईश्वर का अवतार लेना बुद्धि के अनुकूल है वा प्रतिकूल ? यहां पर हम उन छोटी २ युक्तियों पर लेखनी को कष्ट न देंगे जिनका उत्तर केवल इतना कहने से हो सकता है कि वह सर्वशक्तिमान है अतः क्या नहीं कर सकता, परम स्वतंत्र है अस्मात् किसकी युक्तियों और नियमों में वह हो सकता है, इत्यादि । सर्वव्यापी बना रहने पर भी छोटी से छोटी वस्तुओं में प्रविष्ट होने की शक्ति तो आकाश तक में है फिर ईश्वर में क्यों न होगी ? सूर्य चन्द्रमादि के बिना भी तो वह संसार में प्रकाश और शीतोष्णता का प्रस्तार कर सकता था. फिर इन्हें क्यों बनाया ? ऐसी २ छोटी बातों का विस्तार करना समय का खोना है। इससे वही बातें लिखते हैं जिनसे यह विदित हो सके कि ईश्वर अवतार लेता है वा नहीं। आप अवतार को न मानते हों किंतु इतना तो जानते ही हैं कि अवतार लेना वा न लेना उसके निज के करने के कामों में से है और किसी के निज कर्तव्यों का निश्चित ज्ञान केवल उन्हीं को होता है जो कर्ता के साथ निज का सम्बन्ध रखते हों। इस नियम के अनुसार यदि आप की आस्तिकता का मिचोड़ केवल एक बा अनेक पुस्तकों के पढ़ने अथवा पक्षी तथा विपक्षियों के व्याख्यान सुनने वा अपने समाज की प्रचलित रीतियों के पालने हो पर निर्भर हो तो इस विषय में निश्चय के साथ हां वा नहीं कहने का आपको अधिकार नहीं है। अतः आपका इस विषय में कुछ भी बोलना झख मारना है। इससे पहिले यह उचित है कि ईश्वर के साथ निज सम्बन्ध लाभ कीजिए अर्थात् उसे कच्चे और सरल चित्त से न्यूनान्यून इतना प्यार करने में तो अभ्यस्त हजिए जितना धन जनादि को प्यार करते हैं, उसके स्मरण में इतमा मत्त होना तो सीखिए जितना स्वार्थसाधन के उपायों में होते हैं। उस दशा में कोई सदेह नहीं है कि धीरे २ आपके मनोमन्दिर में उसका गमनागमन होने लगेगा और विचार की आंखों से उसकी लीला एवं अवतारों की झांकी होने लगेगी। जिस समय कोई ऐसा कांड उपस्थित होगा जिसमें भाप को निज सामर्थ्य कुछ काम न दे सके उस समय देखिएगा कि वह विपति पड़ने पर धैर्य के रूप में, सम्पत्ति होने पर सहभोगी के बपुष में, सदिच्छा उत्पन्न होने