पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३८५

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मित्र कपटी भी बुरा नहीं होता गत मास में हम ने दिखा दिया था कि छल कोई बुरा गुण नहीं है । यदि भली भांति सीखा नाय और सावधानी के साथ काम में लाया जाय तो उस से बड़े २ काम सहज में हो सकते हैं। इस से हमारे कई मित्रों ने सम्मति दी है कि हाँ बेशक इस युग के लिए वह बड़ा भारी साधन है अतः कभी २ उस की चर्चा छेड़ते रहना चाहिए । तदनुसार इस लेख में हम शीर्षक वाला विषय सिद्ध किया चाहते हैं। हमारे पाठकों वो स्मरण रखना चाहिए कि बुरा यदि होता है तो शत्रु होता है, जिस की हर एक बात से बुराई ही टपकती रहती है वह यदि निष्कपट होगा तो बन्दर की नाईं बहुत सो खौंखयाहट दिखा के थोड़ी सी हानि करेगा और कपटी होगा तो साप की भांति चिकनी चुपड़ी सूरत दिखा के प्राण तक ले लेगा। इन दोनों रीतियों से वह हानिकारक है। इस से उसे मान जोजिए पर मित्र से ऐसा नहीं होगा। वह यदि छली हो तो उस की संगति से आप छल में पक्के हो जायेंगे और ऐसी दशा में वह आप को क्या भुलावेगा आप उस के बाप को भुला सकते हैं। ऐसी गोष्ठी मे बैड के यदि आप बुद्धिमान हैं तो यह मंत्र सिद्ध किए बिना कभी नहीं रह सकते कि गुरू के कान न कतरे तो चेला कैसा? हाँ, यदि आप ऐसे बछिया के बाबा हों कि ऐसी मुहब्बत से इनना भी न सीख सकें तो आपका भाग्य ही आप के लिए दुखदाई होगा, मित्र बिचारे का क्या दोष ? पर हां, यदि मित्र महाशय कपटी हों पर इतने कच्चे कपटी हों कि आप से अपना काट छिपा न सके तो निस्संदेह बुरे हैं, पर अपने लिए न कि आप के लिए ! जिस समय आप को विदित हो जायगा कि यह कपटी है उसी समय आप भमानस होंगे तो मित्रता को तिलांजलि दे के अपनी पूर्वकृत मूर्खता से सजग हो जायंगे। फिर बस आनद ही आनंद है। यदि आपको गोस्वामी तुलसीदास के बचन की सुध आ जाय कि 'सेवक सठ नृप कृपन कुनारी । कपटी मीत सूल सम चारी।' तो भाष्य हमारा कंठस्थ कर लीजिए कि सेवक और नारी तो कोई चीज ही नहीं है, जब चाहा निकाल बाहर किया, रहा नृप, उस की भी क्या चिता है, यदि हम कपट शस्त्र का थोड़ा सा भी अभ्यास रखते होंगे तो अपने पक्ष में उस की कृपणता रहने हो न देंगे। हो हमारा हथखंडा न चल सके तो अपने कच्चेपन पर संतोष कर लेना उचित है अथवा यह समझ के जी समझा लेना चाहिए कि राजा हैं ईश्वर का अंश, उस पर बश ही क्या ? रह गए अकेले मित्र जी, वह यदि कपटी हों तो शूल के समान हैं। पर हमारे पक्ष में तो उनकी धार उसी क्षण कुठित हो चुकी थी जिस समय उनका कपट खुल गया था। अब श्ल हैं तो बने रहें हमारा क्या लेते हैं। बरंच हमारे हाथ में पड़े रहेंगे तो अपनी हो शोभा बना लेंगे।