पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३८८

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पढ़े लिखों के लक्षण कपड़े ऐसे कि रामलीला के दिनों में सिर्फ काले चेहरे ही की कसर रह जाय इस पर भी उनमें कोई देशो सूत न हो, यदि हिन्दुस्तानी के हाथों से लिये भी न गए हों तो और अच्छा । भोजन ऐमे कि बिरादरी के डर से प्रगट रूप में न निभ सके तो गुप्त हो रीति से सहो, पर हों पंच मकार में से कुछ न कुछ अवश्य । उनका रंधन पदि बैरा खानसामा आदि के द्वारा हुआ हो तो क्या ही कहना है नहीं तो खैर किसी शूद्र के ही हाथ का हो । पर परमोतम तो यही है कि विलायत से बन के आए हों चाहे महीनों के सड़े हुए गंधाते ही क्यों न हों और परोसने वाले तथा खाने वाले भी कम से कम चार वरण से प्रथक तो अवश्य ही हों। भाषा ऐसी कि संस्कृत का शब्द तो कान और जबान से छू न जाना चाहिए । हिन्दी से इतनी लाचारी है कि 'माया' 'गया' इन्यादि शब्द नहीं बच सकते तथापि खास २ बातें अंगरेजी अथवा टूटी फूटी अरबी हो की हों। हां कोई नाम पूछ बैठे तो झख मार के राम रहीम आदि के साथ दत्त प्रसाद दास गुलाम आदि जोड़ के मुंह पर लाना पड़ता है। पर इसमें अपना वश हो क्या है । वह पिता की बेवकूफी है। शिष्टाचार में भी नमस्कार पायलागन गम २ जैगोगाल आदि वाहियात बातें न आनी चाहिए । रोजगार भी नौकरी के सिवा और न करना चाहिए क्योकि बबुआई के बईद है। धर्म भी सब से उत्तम तो नास्तिकता है नहीं तो खैर क्रिशच्चनिटी ही, सहो । पर महात्मा मसीह के उत्तम उपदेशों पर चलना कोई आवश्यक नहीं है । केवल इंग्लैंड वालों की सी ऊपरी चाल ढाल बहुत है। ढिठाई बेशक इतनी अवश्य होनी चाहिए कि नागरी का एक अक्षर न सीखा हो पर वेद पुराण देवता पितर इत्यादि को मन ही से तुच्छ न समझ ले किंतु दूसरों को समझाने में भी बन्द न रहे। ____ साधारणतः सब का निचोड़ यह कि पुराने सब लोग अहपक थे और उनकी चलाई हुई सारी बातें नांसस हैं। क्या ज्योतिष क्या वैद्यक क्या मन्त्र शास्त्र क्या नीति क्या धर्म इत्यादि सर्व गप्पः । हां कोई यूरोप एमेरिका वाला उन में से किसी को अच्छा बतलावै तो सच्चे जी से मानने योग्य है। ऐसी ही ऐसी और भी कोई एक बातें हैं जो आजकल के बरसों के पठन पाठन का नतीजा हैं और प्रायः सभी बाबू साहबों में थोड़ी बहुत पाई जाती हैं । बरंच जिस में इन का पूर्णतया अभाव हो वह इस काल की सुपठित एवं सभ्य मंडली का मेम्बर ही नहीं समझा जा सकता। इस से यदि हम साधारण बोली में इनका नाम पढ़े लिखों के लक्षण रख लें तो बुद्धिमानों की दृष्टि में अनुचित न जंचेगा। इन का वर्णन अनेक बार अनेक प्रकार से अनेक सुवक्ता और सुवकों की वाणी तथा लेखनी के द्वारा हो चुका है। अतः हम इस समय इस विषय