पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३९

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मार २ कहे जाओ नामर्द तो खुदा हो ने बनाया है ] पह बाल्य विवाह का प्रभाव है, वीर्य रक्षा न करने का प्रभाव है, इसमें युग विनारे का क्या दोष है ? ह ह रे गुरू, लाए न वही दयानन्दी बातें ! और क्या, ऐसा तो कहो ही गे। अच्छा इसे जाने दो, दिन २ दरिद्र बढता जाता है, उसका क्या बंदोबस्त करते हो ! यही कहोगे कि रोजगार तो करते ही हैं । पर तुम्हारे रोजगारों से पूरा नही पड़ता । रुपया जहाजों मे लदा विलायत ढोया चला जाता है। जब तक उसके रोकने का यत्न न होगा, जब तक दूसरे मुल्को से यहां रुपया न आवेगा, तब तक इस सई बीया कपड़ा आदि बेचने या व्याज खाने से क्या होना है, "टटकन ते कह गाजे टरती हैं ?" तुम मेहनत करते मर जाओगे, कहीं कोई अंगरेज बहादुर नई चीज निकालेंगे, सब लया जिया समेट के ले जायेंगे । "तेली जोर्ड परी २ मेहमान लुडकादै कुप्पा" की कहावत हो जायगी । बहुतेरो को बहुत ठौर मुना कि फलानी कल मंगाते, ढिकानी कम्पनी स्थापित करते हैं, यह कारखाना खोलते हैं, वह कारीगरी फैलाते हैं, अन्त को वही हिन्दुस्तानी घिस २ । इसी पर क्या है, अभी कल की बात है कि गोरक्षा के निमिन सी अरर मची थी। जिस समाज मे देखो, जिस नगर मे देवो, गोरक्षा के बिना हमारा धन धर्म बल वैभव सब निष्फल हुआ जाता है । सर्कार से निवेदन करेंगे, हाय हमारी गऊमाता को बड़े दःख हैं। सर्कार भी न सुनेगी तो गोरक्षिणी सभा करेंगे;बडी २ गोशाला बनवावगे । धिक्कार है हमारे हिन्दूपन को,हमारे जान्यभिमान को, मनुष्यत्व को । बेशक २, हम सब कुछ कर सकते हैं । निम्मंदेह हम सब कुछ करेंगे । फलाने श्रुति, स्मृति पारङ्गत पंडितराजजी ने यह व्याख्यान दिया। अमुक बंश के दीपक लाला फलाने मल ने इतने हजार रुपये देने के लिये दस्तखत किये । यह होगा, वह होगा । आखिर मे देखा तो "यह भी न हुआ वह भी न हुआ।" जब जी लगा के, एक मत हो के सब यह समझ लें कि "देहम्बा पातवे कार्यम्बा साधये" सो बातें यहां गूलर का फूल हो रही हैं। फिर कुछ हो तो क्यो कर हो। करना धरना तो दूर रहा, बहुतेरे तो ऐसे पड़े हैं जिनको देश के हिताहित के विषय की बात तक सुनने की फुर्सत नहीं है। फिर भला ऐसों से क्या आसरा किया जाय? हमने भी समझ रखा है, जैसे वे आलस्व के लतिहल हैं तसे हम बकने के आदी हैं। उनका यह मत है कि "शतम्बद एकन्नमन्ये" हमारा यह सिद्धांत है कि टेढी-सीधी सुनाए जाओ, गाए २ ब्याह होता है, क्या अजब कि कभी राह पर आ जायें । शायद कभी मांख कान होंय कि हम क्या थे, क्या हो रहे हैं, क्या करें। आगे जैसा होगा वसा देखा जायगा पर आज तो हमें यही जान पड़ता है कि मार २ कहे जाओ नामद तो खुदा ही ने बनाया है। खं० १, सं० ५ ( १५ जुलाई, सन् १८८३ ई.) SO