पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३९५

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मड़ते है और हाथ में तलवार नही ] प्रतिमा सब ईश्वर ही की मूर्ति हैं और उन्हें वो जिस भाव से सच्चे मन के साथ पूजेगा बही अपने मनोरष को प्राप्त करेगा। क्योंकि ईश्वर किसी रोति विशेष के हाथ विक नहीं गगन भक्तों की मनसा के अनुकूल रूप धारण मे अक्षम है। उसमे किसी शक्ति का अभाव नहीं है। पर हममे भक्ति होनी राहिए और यों मौखिक वाद के मागे ईश्वर ही कुछ नहीं है उसकी मूर्ति तो कहां से मावेगी। जब आप हमारी मूर्तियों को वैदिक प्रमाणों से पाषाण बनायेगे तब हम भी कह देंगे कि माप प्रेममय परमात्मा को तो मानते ही नहीं, न उसका प्रेमानन्द लाभ करने मे यत्नवान होते हैं, केबल शास्त्रार्थ नाधने के लिए 'परमेश्वर' नामक शब्द ठहरा रकवा है जो परमेश्वर अक्षरो का विकार मात्र है, तथा जिसके विषय मे भी मार्कण्डेय पुराण मे लिखा है कि 'देवि दैत्येश्वरः शंभस्त्रलोक्ये परमेश्वरः' पर भइया, हम तो उसकी संहारिणी आदिशक्ति को मानेंगे, आपके लिए आपकी इच्छा रही। यदि इस उत्तर से आपको क्रोध आवे तो अपने निराकार निर्विकार से हमे दंड दिलवाइए और हम अपने साकार दृश्यमान भगवत्- स्वरूप से सहायता लेकर उन्ही के द्वारा कपालभंजन करके तत्क्षण अपने ईश्वर को महिमा दिखा देंगे। पर यह बातें तो उस समय के लिए है बब झगड़ा खड़ा हो । नही तो कल्याण केवल इसमे है कि धर्म के विषय मे न आप हमसे बोलें न हम आपसे। क्योकि वह हमारा आपका ईश्वर के साथ निज संबंध है और दो जनो के निज संबंध मे अनधिकार हस्तक्षेप करना नीचता है। इससे ईश्वर को चाहे जैसे आप मानिए चाहे जैसे हम माने पर अन्य सब विषयो मे हम आपको और आप हमको सतचित से सहोदर मान के साथ दीजिए। उस दशा में यह भी सम्भव है कि आपका रंग हमे लगाया जाय अथवा हमारा रंग आपको लग जाय और इस रीति से मत की भी एकता हो जाय, वा न हो तो भो परस्पर का स्नेह सुभीता तो बना ही रहेगा, जो ईश्वर का प्रत्यक्ष स्वरूप है, जिसके द्वारा हम ईश्वर प्राप्ति विषयक भी अनेक विघ्नों से बच सकते हैं और प्रेमानुभाव का अभ्यास करते २ स्वयं ईश्वर की मूर्ति को देख सकते हैं। खं. ८, सं० ११ (जून, ह. सं. ८) लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं हमारे पाठकों ने गत दो संख्याओ में कानपुर धम्ममंडल विषयक लेख देखे होंगे जिनमें सहयोगी 'आपावत' की कुछ बातो का उत्तर भी था। उनसे यदि सहृदय समाज को यह आश्रयं हो तो संभव नहीं है कि 'बाह्मण' तो मतमतांतर के झगड़ों से सदा अरुचि रखता था, उसे दो तीन मास से यह कैसी सनक चढ़ी है ! इस विचार