पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३९८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३७४ [प्रतापनारायण-संपावली बुद्धिविशालता, सभ्यता और दूरदर्शिता किस दरजे तक चढ़ी बढ़ी है। ऐसे २ रंग रंग देख कर यदि कोई सच्ची मालोचना करना चाहेगा तो उसे सभ्यता बाधा डालेगी पर इतना तयापि मुंह से निकले बिना न रहेगा कि "इस सादगीप कौन न मर जाय ऐ खुदा । लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं"। अब हमारे पाठकगण बतलाये तो कि ऐसों के साथ उत्तर प्रत्युत्तर करते रहना किस प्रकृति के लोगों का काम है और वह प्रकृति ब्राह्मण के लिए उचित है या नहीं ? फिर हम क्यों न कहें और कहाँ तक न कहें कि बाबा! हमने जो कुछ लिखा था वह दूसरे धोखे से लिखा था, पर अब तुम्ही सच्चे हो, तुम्ही बड़े हो, तुम्ही लिखना जानते हो, हम तुम्हारी बराबर बनना अपने पक्ष में अच्छा न समझ कर मौनावलंदन करते हैं। कहा सुना मुआफ, हार मानी, झगड़ा मिटा, बस! खं० ८, सं० ११ ( जून, ह. सं. ८) छल (२) दो लेखों में हम यह दिखला चुके हैं कि छल बहुत अच्छा और मजेदार गुण है तथा ऐसे वैसे साधारण लोगों से हो भी नहीं सकता अतः इसके सीखने में पत्न करना चाहिए। इस पर हमारे कई मित्रों ने पूछा है कि सीखें तो क्योंकर और कहां पर सीखें । उनके लिए हम आज बतलाते हैं कि सीखना किसी बात का चित्त की एकग्रता के बिना नहीं हो सकता और चित्त तभी एकाग्र होता है जब उसे भय अथवा लालच का सामना करना पड़ता है । इसीसे जो बालक पढ़ने में मन नहीं लगाते और भैया राजा कहने पर भी राह पर नहीं आते टनके लिए प्राचीनों की आज्ञा है कि 'लालने बहवो- दोषास्तारने बहवो गुणाः' किन्तु इस गुण के सीखने की इच्छा रखने वाले बालक नही होते न सीखने से जी ही चुराते हैं अस्मात् भय अथवा तारना के पात्र नहीं है। यों अकस्मात् किसी कपटी के मायाजाल में पड़ के डर व कष्ट उठाना पड़े तो और बात है पर बुद्धिमानी यह है कि उस प्रकार के डर और कष्ट को अपने अपर न आने दें, किसी दूसरे ही को उसमें फंसा कर कपटकारक के हथखंडों और कापटयजालबद्ध गावदीराम की दशाओं का समाशा देखता हुवा शिक्षा लाभ करे। जिससे इतना न हो सकेगा वह कपट कालेज का अयोग्य विद्यार्थी है और अपने आप ताईना पात्र बनता है। हमें सन्देह है कि कष्ट एवं हानि सहने पर वह छलविद्या में कोई डिग्री पास कर सके वा न भी कर सके। बहुत लोग कहते हैं कि आदमी कुछ खो के सीखता है पर हमारी समझ में इस विद्या को भी जिसने कुछ खो के सीखा उसने क्या सीखा। यद्यपि सीखना अच्छा ही है चाहे जैसे सीखा सही किंतु सुयोग्य बहलाने के योग्य वह है जो