पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४०२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३७८ [प्रतापनारायण-ग्रंथावली तो बड़े अच्छे पक्के पूरे छलविया विशारद हो जाइएगा। पर इतना भी स्मरण रखिए कि यह महासिद्धि देवाधिदेव स्वार्थदेव की दया के बिना नहीं प्राप्त होती और वे उन्ही अनन्य भक्तों पर दया करते हैं जो ईश्वरभक्ति,धर्मासक्ति, लोकलला, परलोकभय इत्यादि को उन पर निछावर बरंच बलिदान करके उन्हीं के हो रहते हैं, धर्म कर्म विवेचना प्रति- ष्ठादि का केवल ढकोसला मात्र रखते हैं, सो भी सभी तक जब तक स्वार्थेश्वर की मारा- धना में बाधा न भावे । बस यही मार्ग अवलम्बन कीजिए तो देख लीजिएगा छल की कैसी महिमा है और उसकी सेवा में कैसा आनंद है। खं. ८, सं० १२ ( जुलाई, १० सं० ८) पुराण समझने को समझ चाहिए इस शताब्दी के लोगों की समझ में यह बड़ा भारी रोग लग गया है कि जिन विषयों का उन्हें तनिक भी शान नहीं है उनमें भी स्वतंत्रता और निर्लज्जतापूर्वक राय देने में संकोच नहीं करते । विशेषतः जिन्होंने थोड़ी बहुत अंगरेजी पढ़ी है अथवा पढ़ने वालों के साथ हेलमेल रखते हैं वा किसी नए मत की सभा में आते जाते रहते हैं उनमें यह धृष्टता का रोग इतना बढ़ा हुवा दिखाई देता है कि जहां किसी अपनी सी तबीयत वाले की शह पाई वहीं जो बात नही जानते उसमें भो चाय २ मचाना यारंभ कर देते हैं । बरंच भली प्रकार जानने वालों से भी विरुद्ध वाद ठानने में आगा पीछा नहीं करते यह हम ने माना कि पढ़ने से और पढ़े लिखों की संगति से मनुष्य की बुद्धि तीब्र होती है किंतु इस के साथ यह नियम नहीं है कि एक भाषा वा एक विद्या सीखने से सभी भाषाओं और विद्याओं का पूर्ण बोध हो जाता हो । देखने से इस के विरुद्ध यहाँ तक देख्न पड़ता है कि एक ही विषय का यदि एक अंग आता हो तो दूसरा अंग सीखे विना नहीं आता । साहित्य में जो लोग गद्य बहुत अच्छा लिखते हैं उन्हें भी पद्य रचना सोखनी पड़ती है और जिन्हें छंदोनिर्माण में बहुत अच्छा अभ्यास होता है वे भी गद्य लिखना चाहें तो बिना परिश्रम नहीं लिख सकते । दृश्यकाव्य के सुलेखक अव्यकाव्य में और श्रव्यकाव्य के सुलेखक दृश्यकाव्य में सहसा प्रवेश कभी नहीं करते यद्यपि सब साहित्य ही अंग हैं। फिर हम नहीं जानते हमारे नौसिखिया बाबू लोग क्यों बिन जानी बातों में टंगड़ी अड़ा के हास्यास्पद बनने में घावमान रहा करते हैं। उनके इस साहस का फस सिवा इसके और क्या हो सकता है कि जिस विषय में वे ऐसी बलच्छि करते हैं उसके तत्ववेता लोग उन्हें हंसें थूके वा अपने जी में कुढ़ के रह जायं बोर इतर जन धोखा खा के सच मूठ का निर्णय न कर सकें। विचार कर देखिए तो यह भी देश का बड़ा भारी दुर्भाग्य है कि पढ़े लिखे लोग ऐसा अनर्थ कर रहे हैं जिससे आगे होने वाली पोदी के पक्ष में भ्रमग्रस्त होकर बड़े भारी अनिष्ट की संभावना है। सरि ने हमें