पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४०७

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सर्वसंग्रह कर्तव्यं कः काले फलदायकः संसार में यदि सुख और सुविधा के साथ निर्वाह करने की इच्छा हो तो इस वाक्य का पूर्ण रूप से अनुसरण कर और विश्वास कर रक्खे कि वेद में जितना गौरव गायत्री का है उतना ही लोकाचार में इस महामंत्र का है। जो लोग कर्तव्याकर्तव्य के झगडे में रह कर घर ध्यान नहीं देते वे अपने मन में चाहे जैसे बने बैठे रहें पर अतिरिक्त कुछ भी लाभ नहीं कर सकते । किंतु इस वचन के मानने वाले सो विश्वा तो अकृतकार्य होते ही नहीं हैं और यदि दैवयोग से कभी यथेच्छित सफलता न भी हुई तो "यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः" का विचार कर के मन को अवश्य समझा सकते हैं। इस से बुद्धिमान को चाहिए कि किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा कार्य को तुम्छ, त्याज्य व निंद्य न समझ कर यह समझ ले कि सब का स्वामी जगदीश्वर है और वह सब मतों के अनुमार सर्वशक्तिपान है। यदि वह सचमुच किसो समुदाय को बुरा समझता होता तो एक क्षण में उसे नास्ति नामृत की दशा को पहुँचा देता। पर कभी कहीं ऐसा देखने सुनने में नहीं आया इस से निश्चय होता है कि उस की इच्छा ही है कि जगत का पचड़ा यों ही चले । फिर भला यदि हम किसी वस्तु को वस्तुतः बुरा समझ के छोड़ दें तो उस को इच्छा का विराम ही करते हैं कि और कुछ ? और ऐसा करने वाले दुःख के भांगी न होंगे तो क्या होंगे ? यदि ईश्वर का अस्तित्व आप की समझ में न आता हो तो भी यह समझने में कोई आपत्ति नहीं है कि दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है जिस से कुछ न कुछ काम न निकले और जिस से कुछ काम निकलता हो उसे काम में न ला कर बेकाम समझ बैठना निरी नासमझी है । इस रीति से बास्तिक और मास्तिक दोनों मतों से यही सिद्ध होता है कि 'सर्वसंग्रहकर्तव्यं'। यदि बाँखें खोल के देखिए तो वास्तव में बुरा कुछ भी नहीं है और कोई भी नहीं है। संखिया को लोग सब से बुरा विष समझते हैं पर कई एक भयंकर रोगों के पक्ष में वही अमृत का काम देती है। झूठ बोलना, छल करना बड़ा पाप समझा जाता है पर अनेक स्पल पर जीवन, धन और प्रतिष्ठादि की रक्षा उसी से होती है जिन के बिना सुकर्म और सुगति का होना असंभव है। आप कहिएगा जुवारी बहुत बुरा होता है। हम कहेंगे निलोभ तो भी होता है । लाख रुपए दे दीजिए तो भी एक ही दोष पर धर देगा और सब हर नाने पर भी इसरों की तरह हाव हाव न करेगा। बाप माशा कीजिएगा, नशेबाज अच्छा नहीं होता। हम निवेदन करेंगे, निर्द्वन्द वह भी होता है अपनी धुन में हापी के सवार को मुनगा ही सा समझता। आप समझते होंगे कामी बड़ा बुरा होता है पर हमारी समझ में निर्बलता के कारण सहनशील वह भी होता है। यों ही क्रोधी किसी की प्रवंचना नहीं करता, लोभी मरने के पीछे दूसरों के लिये अच्छी खासी जमा छोड़ जाता है, मोही अपनायत बालों का सच्चे जो से शुभचिंतक होता है, निदक दोष