पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४०९

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प्रह्लादचरित्र ] ' . ३८५ जब काम बन जायगा तब निन्दक लोग प्रशंसा और बिरोधीजन खुशामद करेंगे । अपवा म करें तो भी हमारा क्या लेते हैं । समझदार लोग हमे नीतिज्ञ ही कहेंगे और हम तथा हमारे लोग आनन्द से रहेगे। और यही जन्म लेने का फल है जिसकी प्राप्ति के लिए सभी सब कुछ करते हैं । फिर हमी अपने नोन्याचार्यों का यह कहना कषों न मानें कि 'सर्वसंग्रहकर्तव्यं'। हमने माना कि सर्वथा पूर्णकाम और सर्वज्ञ अरेला सर्वेश्वर है तथापि बहुसुविधा सम्पन्न एवं बहुज्ञ भी एक से एक इक्कीस विद्यमान हैं। और उनकी श्रेणी में सम्मिलित होना सभी का समीष्ट एवं कर्तव्य है जिसके साध . का एक- मात्र मूल मंत्र यही है जो आज हम वर्षारंभ के आनन्द में अपने प्रिय पाठकों को स्मरण दिलाते हैं और सम्मति देते हैं कि पाप पुन्य,निंदा स्तुति, नर्क स्वर्गादि के बखेड़े छोड़िए, केवल इस बात पर ध्यान रखिए कि "येन केन प्रकारेण स्वकार्य साधयेत् सुत्रीः" और यह तभी हो सकता है जब सदा, सब ठोर, सब दशा में चित्त का झुकाव इसी ओर बना रहे कि "सर्व संग्रह कर्तव्यं कः काले फलदायकः"। खं० ९ सं० १ ( अगस्त, ह० सं०८) पुराण समझने के लिए समझ चाहिए प्रहलादचरित्र भगवद्भक्त शिरोमणि प्रह्लाद जी की कथा कई पुराणों मे वणित है जिसे पढ़ अथवा सुन कर भगवान के सच्चे प्रेमियों को तो अपूर्व आनंद आता ही है, किंतु जो हमारी भांति सिद्धांत प्रेम ही का मानते हैं पर संसार के मायाजाल को तोड़ भागने की सामर्थ्य नहीं रखते, उन्हें भी विश्वास की हड़ता और उत्साह की अधिकता मे बड़ा भारी सहारा मिलता है। बरंच कुछ काल के लिए तो चित्त में एक प्रकार की मस्ती आ जाती है । रहे वे लोग जिन्होने प्रेमनगर का मार्ग तो नहीं जाना किंतु अपने पिता पितामहादि के धर्म की मनोहारिणी मूर्ति को देखकर उसमें छिद्र हो ढूंढने का दुर्व्यसन नहीं रखते उन्हें भी साधारणतया उक्त कथा सुन कर परलोक के सुख और लोक में धर्मनिर्वाह को आशा होती है । और यदि विशेषतया बुद्धि से काम लें तो प्रेमशास्त्र की आरंभिक शिक्षा लाभ कर सकते हैं पर जिनकी आंखें अपने यहां के रजतकांचन पात्रों को तुच्छ और बिला- यती चीनी पियानों को बड़े आदर की दृष्टि से देखती हैं यवा जिनके गुरू जी ने यह मोहन मंत्र सिखा दिया है कि जो कुछ हम कहैं वह तो ठीक है और सब कुछ 'गप्प- म्बसंते, बुटिविरुवः', उन्हें उपर्युक्त सत्यकथा से ईश्वर में भक्ति, धर्म में श्रद्धा और मन में दृढ़ता तो क्यों उत्पन्न होने लगी, हाँ खोसें बाने के लिए ऐसे २ कुतकं अवश्य उपजते है कि आग से न जलना, विष से न मरना, पर्वत पर से गिर के अक्षत बना रहना