पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४१६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३९२ [प्रतापनारायण-अंपावली से उस की स्तुति म गाइएगा तो आस्तिका ही कहाँ रहेगी और यह सब तन मन पवन संसारो ही हैं कि और कुछ हैं ? निरा-यह तो सभी आस्तिक करते हैं पर हमारा मतलब यह है कि ईश्वर को संसारी बनाना उचित नहीं। __ मूर्ति-संसारी क्यों बनाना उचित नहीं ? पिता माता गुरू राजा यह सब संसारियों के विशेषण हैं और यही उनके लिए प्रयुक्त करने पड़ते हैं फिर उसे संसारी बनाए बिना कैसे निर्वाह हो सकता है। संसार का और उस का तो व्याप्य व्यापकादि संबंध ही ठहरा अत: यदि उसे अपनी समझ तथा श्रद्धा के अनुसार किसी संसारी श्रेष्ठ विशेषण का विशेष्य ठहरा लें तो क्या दुराई करते हैं। निरा-आप श्रेष्ठ ही विशेषण का विशेष्य तो नहीं बनाते वरंच उसे पाषाण धात्वादि का पुतला ठहराते हैं यह अनुचित नहीं तो क्या है ? जरा पढ़ लीजिए गत दो मास के मध्य हमारे मित्र रोगराज ने शुभागमन किया था। उन्हीं के आगत स्वागत में हमें लिखने पढ़ने का अवकाश नहीं मिला । क्या उलहने के पत्र भेजने वाले रसिकगण क्षमा करेगे? हमारी पुस्तकों तथा 'ब्राह्मण' पत्र के दाता ग्रहीता खड्गविलास प्रेस बांकीपुर के स्वामी श्री महाराजकुमार 'बाबू रामदीन सिंह महोदय हैं। हमने जो कुछ लिखा है, लिखते हैं, लिखेंगे उसके अधिकारी वही हैं अथवा वह जिसे आज्ञा दे वह सही, फिर हम से लोग न जाने क्या जानकर एतद्विषयक पत्र व्यवहार करते हैं। हम इस विज्ञापन द्वारा सब साहबो को सूचना दिए देते हैं कि जिन्हें हमारे लेख देखने की साध हो अथवा छापने की इच्छा हो उन्हें बांकीपुर के पते पर चिट्ठी पत्री भेजना चाहिए, हम जवाब अवाब न देंगे बल्कि जवाबी कार्ड या टिकट जम कर जायंगे स" म" झे०? गत वर्ष किसी मम्बर में हमने अपने मित्रों को सलाह दी थी कि देश की दशा सुधारने के लिए ब्राह्मण जाति का हौसला बढ़ाना मुख्य कर्तव्य है। अतः देशभक्तों को चाहिए कि ब्राह्मणों के साथ पत्र व्यवहार तथा वार्तालाप के समय-श्रीमानमहर्षिकुमार- के पद का प्रयोग किया करें। बड़े आनन्द की बात है कि हमारी यह सलाह बहुत से मित्रों ने पसंद की है बरंच सहयोगी भारतप्रताप में इस शोषक का एक उत्तम लेख भी एक महाशय कई मास से दे रहे हैं और अपना नाम प्रकाशित करने के स्थान पर केवल यही पटवी प्रकाश करते हैं । यदि कुछ लोग और भी इधर ध्यान दें तो बहुत शीघ्र यह रीति निकल सकती है जिसका फल भी थोड़े ही दिन में देख पड़ेगा। सम्भव है अधिक