पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४२०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[प्रतापनारायण पावलो यह नए मत वाले कहते हैं कि देश मा एक मत होना चाहिए पर यह नहीं समझते कि जब मिसने ऐसी चेष्टा को है सब मतों के मध्य और एक संख्या बढ़ा हो दो है । सब का एक हो जाना तो 'न भूतो न भविष्यति' । क्योंकि एक तो लोगों की रचि प्रथक २ रीति को हुआ करती है इससे कभी ऐसा हो ही नहीं सकता वरंच इसी विचार से दूरदर्शी जगदहितैषी महर्षियों ने पात्रानुरूप उपदेश किए हैं। नहीं तो जैसे एक ही औषधि से सब प्रकार के रोगियों का उपकार असंभव है वैसे ही एक ही पति से सब प्रकृति के जीवों का कल्याण असाध्य होता । दूसरे, ईश्वर न करे जो की सब नवपंथी हो जायं तो भारत के गारत होने में बिलंब क्या लगेगा ? देव प्रतिमाओं, ऋषिवंशजों, पवित्र स्थानों, पतिव्रताओ, सदग्रंथों का महत्व एक दिन में लुप्त हो जाय, हिंदू जाति और हिंदुस्तान का नाम भी न रहे । कथन मात्र के लिए ईश्वर का शब्द शेष रहे, सो भी शुष्कवादी अरसिक कलहप्रिय समुदाय वालों के नियमों से जकड़ा हुआ न अपने प्रेमियों को रुचि रखने में योग्य न पापियों का उद्धार करने में समर्थ न प्रत्येक भाषा के प्रत्येक भाव समझने में विज्ञ ! क्योंकि आप रूपो की समझ में देश का उपकार ऐपी बनगली बातो पर निर्भर है ! हम पूछते हैं जिन लक्षणो से सहस्रो नगरों की शोभा तथा लक्षों देशभाइयों की आजीविका एक क्षण में नष्ट हो सकती है वही यदि धर्म के अंग वेद के उपदेश देश के उद्धार का उपाय है तो फिर पाप की जड़ लबेद की लोक और मातृभूमि के सन्यानाश की नव किसको कहना चाहिए ? पर झगड़ालू पंथ वालों को उलटो समझ को क्या कहिए जो संस्कृत का साहित्य सीखे बिना ही वेद शास्त्र का तत्व सिखलाने वाले बने फिरते हैं और देशभक्ति का नाम ले ले कर कुतर्कों और कुवाक्यों का प्रचार करने बरंच कभी २ दालत--नही २ लाठी तक लड़ने में संकुचित नहीं होते। परमेश्वर इनकी बुद्ध सुधारे अथवा देशाई इन्हे जातीय दंड देने मे बद्ध परिकर हों तभी कुछ भलाई हो सकती है नहीं तो यह झगड़ालू पंथ एक न एक दिन बुरा रंग लावैगा । खं. ९, सं० ४ ( नवंबर ह० सं०८) प्रतिष्ठा केवल प्रेमदेव की है नहीं तो जो दो हाथ दो पांव एक मुंह एक नाक इन्यादि आपके है वही हमारे भी हैं। जै हाड़ मास लोह चमड़े आदि का बना हुआ आपका शरीर है वैसे ही हमारा भी है। खाने पीने सोने जागने हंसने रोने जीने मरने आदि में भी आप और हम बराबर ही हैं। फिर आपके कौन सा सुर्खाब का पर लगा हुआ है कि हम आपको मन से प्रसन्न रखना चाहते हैं, तन से सेव्य बनाने पर उद्यत रहते हैं तथा ववन से स्वामी जी गुरू जो महात्मा जी राजा साहब बाबू साहव मुंशी साहब हुजूर खुदाबंद बंदापरवर प्यारे