पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४२३

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पिता] भी तम पर कष्ट धन की हानि उठाने पर भी सच्चे मन से इसकी ऐखत करते हैं फिर हमारे इस कथन का आप क्योंकर विरोध कर सकेंगे कि प्रतिहा केवल प्रेमदेव की है। आप नास्तिक हों तो हमें आपसे शास्त्रार्थ करने का रोग नहीं है पर केवल इतना पूछेगे कि दुनिया में किसी को कुछ मानते हो या नहीं ? यदि कहिएगा-हा-तो फिर हमारा प्रश्न यही होगा कि-हाँ, तो क्यों ?-अपवा हठ के मारे कह दीजिए-नही- तो हम कहेंगे यह हो नहीं सकता कि आप अपने जीवन को भी न मानते हों, उसको सुखित सुरक्षित बनाए रखना अच्छा न जानते हों। इन सब बकवादों के पीछे अंत में हार मान के यही मानना पड़ेगा कि जिससे हम प्रेम रखते हैं उस की प्रतिष्ठा करते हैं। अतः अखंडनीय सिद्धांत पही है, परमोत्कृष्ट श्रेणी वाली बुद्धि का निचोड़ यही है, पाताल से ले के सातवें आकाश तक कोई दौड़ जाय तो जाचेतनमयी सृष्टि बरंच स्वयं सृष्टिकर्ता को अपनी २ बोली में यही मंत्र पढ़ते हुए सुनेगा कि प्रतिष्ठा केवल प्रेमदेव की है। इससे जिसे जितनी अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त करके अपना अपने लोगों का जीवन सफल करना हो उसे चाहिए कि उतनी ही अधिक प्रेमदेव की आराधना करे क्योंकि चीटी से लेकर ब्रह्म तक उन्ही के बनाए प्रतिष्ठित बनते हैं नहीं तो किसी में कुछ भी तत्व नहीं है किसी का कुछ भी सत्व नही है। तंत की बात यही है कि प्रतिष्ठा केवल प्रेमदेव की है। खं० ९, सं० ४ (नवंबर ह० सं०८) चिंता इन दो अक्षरों में भी न जाने कैसो प्रबल शक्ति है कि जिसके प्रभाव से मनुष्य का जन्म ही कुछ का कुछ हो जाता है यद्यपि साधारणतः चित्त का स्वभाव है कि प्रत्येक समय किसी न किसी विषय का चिन्तम किया ही करता है। जिन्हें ईश्वर ने सब कुछ दे रक्खा है, जिनको लोग समझते हैं कि किसी बात की चिंता नहीं है वे भी अपने मनो- विनोद वा अपनी समझ के अनुसार जीवन को सार्थकता के चिन्तम में लगे रहते हैं । कमरा यों सजना चाहिए, बाग में इस रीति की क्यारी होनी चाहिए, खाने पहिनने को अमुक २ भोजन वस्त्र बनवाने चाहिए, परीजान का फलाना जेवर, फलानी पोशाक, इस तरह की बननी चाहिए, फलाने दोस्त को इस प्रकार खुश करना चाहिए, फलाने दुश्मन को यों नीचा दिखाना चाहिए इत्यादि सब चिता ही के रूप हैं। यहां तक कि जब हम संसार के सब कामों से छुट्टी लेकर रात्रि के समय मृत्यु का सा अनुभव करके एक प्रकार के जड़यत बन जाते हैं, हाथ पाव इत्यादि से कुछ काम नहीं ले सकते, सब भी चितादेवो हमें एक दूसरी सृष्टि में ला डालती है। स्वप्नावस्था में हम यह नहीं