पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४२७

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गोरक्षा हिंदुओं का परम धर्म है और हिंदुस्थान के धन संपत्ति का वृहदांश उसी पर निर्भर करता है। इस बात के लिए प्रमाणों की अब आवश्यकता नहीं रही। प्राचीन सदग्रंथ और नवीन सुलेखक तथा सुवक्तागण भलीभांति सिद्ध कर चुके हैं कि इसके बिना हिंदू जाति और हिंद देश का वास्तविक कल्याण सर्वथा असंभव है। पर यह बात केवल जान लेने अथवा प्रमाणित कर देने मात्र से कुछ नहीं हो सकता जब तक देश काल की गति के अनुसार उद्योग न किया जाय । इतिहास में कई आर्य नरेशों को कथा इस प्रकार की देवी जाती है कि जब उनके विधर्मी शत्रुओं ने अन्य उपायों से अपनी जय न देखी तो दोनों दल के मध्य कुछ गौएं बांध दी इस पर हिंदू वीरों ने गोरक्षा के विचार से शस्त्र संचालन का परित्याग करके हार मान ली अथवा प्राण और पृथिवी से हाथ धो बैठे। इस गेति की कार्यवाही धर्मजाड्य की दृष्टि से चाहे जैसी समझी जाय पर नोतिशास्त्र के अनुसार समयविरुद्ध होने के कारण उचित नहीं कही जा सकती। थोड़ो सो गउओं के प्राण बवा कर धरती से गंवा बैठने और अन्य धमियों को अधिक गोवध का सुभीता देने से यह उत्तम होता कि जहां वरती माता के उद्धारार्थ युद्धक्षेत्र में बहुत से ब्राह्मण क्षत्रिय मरने को सन्नद्ध थे वहां उन थोड़ो सी गउओं से भी यह प्रार्थना करके शत्रु समुदाय पर शस्त्र वर्षा कर दी जाती कि 'मातः ! धरती देवी को रक्षा के बिना न हमारी रक्षा संभव है न तुम्हारी, अस्मात् उनके लिए जैसे हम लोग अपना रक्त बहाने में उपस्थित हैं वैसे ही तुम भी प्राण विसर्जन करने से मुह न मोड़ो।' इस प्रकार से जय लाभ करने में थोड़ी सी गौओं का नाश हो जाता पर आगे के लिए धरित्री गोरक्षकों के हाथ में बनी रहती तो बहुत सी गौओं की रक्षा होती रहती। पर भारत के अभाग्य से भारतीयगण कुछ दिन से यह महामंत्र भूल गए हैं कि 'बहुत से लाभ की संभावना हो तो वोड़ी सी हानि को हानि न समझना चाहिए। इसके अतिरिक्त बुद्धिमानों को यह भी समझना उचित है कि सच्चाई के साथ केवल अपनी सामर्थ्य भर काम करने से जो फन होता है वह झूठ मूठ का आडंबर फैला के 'धाय चलने और अमिट गिरने' का उदाहरण बनने से कदापि नहीं हो सकता। यदि हमारी सी समझ रखने वाले थोड़े से लोग इन दो बातों पर भलीभांति ध्यान देकर यथासंभव दूसरों को समझाते रहने का विचार रक्खें तो गोरक्षा काई ऐसा काम नहीं है जो आर्य देश में संतोषदायक रूप से न हो सके। पर ऐसा न करके जो लोग व्यर्थ गोरक्षा र चिल्लाते फिरते हैं उनके द्वारा सिवाय गोबध में सहायता पहुँचने के और कुछ नहीं हो सकता। करने और कहने में होता है अंतर। यदि सच्चे जी से काम करने वाले प्रत्येक नगर और ग्राम में एक २ भी हों-हम समझते हैं अवश्य होंगे-तो अपने २ हिंदू मित्रों