पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४२८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४०४ [प्रतापनारायण-ग्रंथावलो को अनुरोध सहित एक २ गाय पाल लेने की रुचि दिला तथा जिन पर मित्रता का दबाव न पड़ सकता हो उन्हें गोपालन के प्रत्यक्ष काम समझाते रहें ! अर्थात् जितना उसे घर में रखने से व्यय और परिश्रम पड़ता है उससे अधिक शुद्ध, स्वादिष्ट बलकारक घृत इंधनादि के द्वारा हित भी होता है एवं उसकी संतति से खेती बारी आदि में यदि सहायता लेने की शक्ति न हो तो भी रुपया मिल ही रहता है- ऐसी २ बातें पदि उचित रीति से समझाई जाय तो हिंदुओं में फी सैकड़ा अस्सी लोग इस कार्य को बड़े चाव से उठा सकते हैं। इसके साथ ही प्रत्येक जाति के लोगों में इसकी चर्चा फलावे रहना भी उचित है कि बूढ़ी और बेकाम गाय ब्राह्मणों को दान करना पाप है तथा बिन जाने मनुष्य के हाथ बेचना जातीय दंड का हेतु है। मुसलमान भाइयों के साथ भी मतवाद न बढ़ा कर उन्हें यह समझाना चाहिए कि हमारा आपका सैकड़ों वर्ष से मेल मिलाप है और अब इस देश को छोड़ के कहीं आप निर्वाह नहीं कर सकते अतः यहाँ की बलवायु के अनुकूल और वृहद समुदाय वालों की रीति नीति का सहगमन हो शारीरिक और सामाजिक सुख अथच सुविधा का मूल समझिए। इस रीति से समझाने पर आशा नहीं विश्वास है कि हिंदू मुसलमानों के द्वारा गऊओं का एक पुष्कल समूह सहज में संरक्षित रह सकता है और उससे हमारे भोजन वस्त्र की वर्तमान अनुविहित का बड़ा भारी अंश दूर हो सकता है । एवं इस काल में इतनी ही हमारी सामर्थ्य भी है, उसका अवलंबन न करके जो लोग बड़े २ झगड़ों में पांव अड़ाते हैं वे चाहे अपने जी से सच्चे भी हों पर अपनी करतूतों के द्वारा देश का अनिष्ट ही करते हैं। क्योंकि सरि से इस विषय मे आशा करना दुगशा मात्र है जब तक सस्ते दामों में इतर मियों को गाय मिलने का मार्ग हम स्वयं न रोकें । और इसका प्रबंध जाति २ के मुखियों को शिष्टता के साथ उपदेश देने के बिना कभी नहीं हो सकता। रहा गोशालास्थापन का प्रबंध, वह यदि राजाओं और बड़े धनाढ्यों को उत्साहित करके उन्ही के आधीन कर दिया जाय तो तो कदाचित कुछ हो भी सके नहीं तो जैसा अभी तक कई स्थान पर देखा गया है वैसा ही बहुधा देखने में आवैगा कि चंदा उगाहने वाले गौओं का नाम ले २ कर लोगों से रुपया लेते और अपने चैन की बंशी बजाते हैं। वरंच गोभक्षिणी जाति की दुराचारिणी स्त्रियों ही की सेवा सुश्रूषा मे अधिकतः व्यय करते हैं और गऊ माता उनके जनम को झीका करती हैं। कोई २ इस विषय के उपदेशक बन २ कर राजनीतिक चर्चा छेड़ के रानकम ारियों को चिढ़ा कर देश का रुपया परदेश फेंकने का ठान ठानते हैं अथवा प्रत्येक धर्म पर आक्षेप कर २ हिंदुओं की श्रृंदा हटा देते हैं और अन्य धर्मियों को अधिक गोबध के लिए भड़का के सर्वसाधारण की शांति में विघ्न डालते हैं। ऐसे लहू लगा के शहीदों में शामिल होने वालों से तो वे हजार दस हजार अच्छे हैं जिन से कभी धोखे में कोई बछिया बछड़ा मर जाता है तो हत्याहरण नामक तीर्थ में स्नान दान किए बिना किसी को मुंह नहीं दिखाते वरंच लोक समुदाय के सामने अपने मुंह अपना पाप स्वीकार करते रहते हैं। सच पूछो तो यह लोग धर्म की मर्यादा का आदर और भय हृदय में स्थिर रखने वाले हैं किंतु कलियुगी गोरक्षक