पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४३०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४.६ [ प्रापनारायण-ग्रंथावली मन्अ, आप कहते हैं मना । अच्छा लो भई, माफ करो, हमें तुम्हारी तरह बमन करना नहीं आता । क्या मजे में लिखे जाते थे, आ के विघ्न डाल दिया । और सुनो, ईसाइयों के यहां शराब पीना मना है, परस्त्रीगमन मना है। लो यारो, सब मतों की आज्ञा वा निषेध गिनाएंगे तो होगी देर और तुम्हारा बहुमूल्य समय यों हो जायगा। भक्तों के मुख में 'हरि भज २ हरि भज मोरे मना, जो तू चाहे सुख अपना', कवियों मे गोस्वामी तुलसीदासजी ने अंत में मना ही की शरण ली हैं-'पाई न गति केहि पति पावन राम भज सुन सठ मना'। जो कभी कुमारगियों के साथ बातचीत सुनी सुनाई होगी ( ईश्वर न करे आप कुसंगत में रहते हो ) तो सुना होगा--'रामातु याक् मना है' ?* उनके यहां वाल्मीकि जी इसी मना के प्रताप से तर गए। जगत् में यावत् पदार्थ हैं सब का मना ( नाम ) होता है। बिना मना के किसी वस्तु का वर्णन ही नहीं कर सकते । यदि तौरेत अंगरेजी में पढ़ा होगा तो जब इसराइलियो को भूख लगी थी तब स्वर्ग से मना वर्षा था। इसी मना ने उन के प्राण बचाए थे। रुई की तौल लगी है, सेठ जी पगड़ी बाँधे पेंचवां पी रहे हैं-"अरे रमशैय्या मन्ना, उठे तो कोई णाहि मालूम पड़ें छै शब के शवणूं रोटा की पड़े हैं। परशों कोई अटेणहि के रईणू बाट लातो एकदु मना हो तो क्यूं इतणी पशेरियांणी जुरुरत होती।" सुनो क वहरियो मे 'मनादी कर दी जाय कि 'फुला २ की डिक्री में मनाही नहीं हो सक्ती'। जरा संभल के पढना, तुम्हारे मनाने में भी घंटों लगते हैं । जानी ! तू क्यों इतना अनमना होती है ? तेरी सुकड़ी हुई नाक, लाल आँखें, फड़कते होठो से "नहीं जी !' सुन के प्रेमशास्त्र में न मानना भी तो मना है। रज्जा यह कौन बात है, देखो हंसो बोलो, भला ले क्यों पीठ दे के हमें भी उदास करे देते हो। यह कौन बात है, खैर । हमारे भारतवामियों को आजकल देशहित के किमी सिद्धांत पर चलना मना है। केवल एक हरे भरे रमना में लालाजी को टहलना और आमना जाना ही काम है। इसके अतिरिक्त किसी अन्य सद्गुण की भामना नहीं। दुर्भाग्य का सामना करने का कोई उपाय नही । देखिए इस हत्यारे रामना को कब राम नाश करता है। देख लाला, हमारे दामना, भांग बूटो के लिए तुमई सों कछु पामना है, तो फिर बोल न जे जमना मैया की, जै जै! खं, ९, सं० ५ ( दिसंबर ह० सं० ९) तुम्हारा क्या नाम है ? (बदमाश आपस में प्रायः वाक्य के अंक उलट के बातचीत करते हैं जिससे कोई समझ न जावे )।