पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४३३

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आप ]
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आप ] हिन्दी के 'आप' का पता लगाइए, और न लगे तो हम बतला देंगे । शंस्कृत में एक आप्त शब्द है, जो सर्वथा माननीय ही अर्थ में आता है, यहां तक कि न्याय शास्त्र में प्रमाण चतुष्टय ( प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, और शाब्द ) के अंतर्गत शाब्द-प्रमाण का लक्षण ही यह लिखा है कि 'आप्तोपदेशः शब्दः' अर्थात् आप्त पुरुष का वचन प्रत्यक्षादि प्रमाणों के समान ही प्रामाणिक होता है, वा यों समझ लो कि आप्त जन प्रत्यक्ष, अनुमान और उपमान प्रमाण से सर्वथा प्रमाणित ही विषय को शब्द बद्ध करते हैं। इससे जान पड़ता है कि जो सब प्रकार को विद्या, बुद्धि, सत्यभाषणादि सद्गुणों से संयुक्त हो वह आप्त है, और देवनागरी भाषा में आप्तशब्द उसके उच्चारण में सहजतया नहीं आ सकता इससे उसे सरल करके आप बना लिया गया है, और मध्यम पुरुष तथा अन्य पुरुष के अत्यन्त आदर का द्योतन करने के काम में आता है। 'तुम बहुत अच्छे मनुष्य हो' और 'यह सजन हैं'-ऐसा कहने से सच्चे मित्र, बनावट के शत्रु चाहे जैसे "पुलक प्रफुल्लित पूरित गाता" हो जायं, पर व्यवहारकुशल लोकाचारी पुरुष तभी अपना उचित सम्मान समझेंगे जब कहा जाय कि, "आपका क्या कहना है, आप तो बस सभी बातों मे एक ही हैं", इत्यादि। अब तो आप समझ गए होंगे कि आप कहां के हैं, कौन हैं, कैसे हैं, यदि इतने बड़े बात के बतंगड़ से भी न समझे हों तो इस छोटे से कथन में हम क्या समझ सकेंगे कि आप संस्कृत के आप्त शब्द का हिन्दी रूपान्तर है, और माननीय अर्थ के सूचनार्थ उन लोगो ( अपवा एक ही व्यक्ति ) के प्रति प्रयोग में लाया जाता है जो सामने विद्यमान हों, चाहे बातें करते हों, चाहे बात करने वालों के द्वारा पूछे बताए जा रहे हों, अथवा दो वा अधिक जनों में जिनकी चर्चा हो रही हो। कभी २ उत्तम पुरुष के द्वारा भी इसका प्रयोग होता है, वहां भी शब्द और अर्थ वही रहता है। पर विशेषता यह रहती है कि एक तो सब कोई अपने मन से आपको ( अपने तई । आप ही ( आप्त ही ) सम- झता है। और विचार कर देखिए तो आत्मा और परमात्मा की अभिन्नता या तद्रूपता कही लेने भी नहीं जानी पड़ती, पर बाह्य व्यवहार में अपने को आप कहने से यदि अहं- कार को गन्ध समझिए तो यों समझ लीजिए कि जो काम अपने हाथ से किया जाता है और जो बात अपनी समझ स्वीकार कर लेती है उसमें पूर्ण निश्चय अवश्य ही हो जाता है और उसी के विदित करने को हम और आप तथा यह एवं वे कहते हैं कि 'हम आप कर लेंगे' अर्थात कोई सन्देह नहीं है कि हमसे यह कार्य सम्पादित हो जायगा । हम आप जानते हैं', अर्थात् दूसरे के बतलाने की आवश्यकता नहीं है, इत्यादि । ___ महाराष्ट्रीय भाषा के आपा जी भी उन्नीस विस्था आप्त और आर्य के मिलने से इस रूप में हो गए हैं, तथा कोई माने या न माने, पर हम ममा सकने का साहस रखते हैं कि अरबी के अब्ब ( पिता, बोलने में अब्बा) और योरोपीय भाषाओं के पापा (पिता) पोप (धर्म-पिता) आदि भी इसी आप से निकले हैं। हां इसके समझने समझाने में भी जी ऊबे तो अंगरेजी के एबाट (Apat महंत ) तो इसके हई है, क्योंकि उस बोली में