पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४१०
[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४१. [प्रतापनारायण-ग्रंथावली ह्रस्व और दोघं दोनों प्रकार का स्थानपन्न A है, और पकार का बकार से बदल लेना कई भाषाओ की चाल है। रही टी (T ) सो वह तो 'तकार" हई है। फिर क्या न मान लीजिएगा कि एबाट साहब हमारे 'आप' बरंच शुद्ध आप्त से बने हैं ! हमारे प्रान्त मे बहुत से उच्च वंश के बालक भी अपने पिता को अप्पा कहते हैं, उसे कोई २ लोग समझते हैं कि मुसलमानो के सहवास का फल है। पर उनको यह समय ठीक नहीं है । मुसलमान भाइयो के लडके कहते हैं अब्बा और हिन्दू सन्तान के पक्ष मे 'बकार' का उच्चारण तनिक भी कठिन नहीं होता, यह अंगरेजो को तकार और फारस वालो को टकार नही है कि मुह से ही न निकले, और सदा मोती का मोटी अर्थात् स्थूलागी स्त्री और खस की टट्टी का तत्ती अर्थात् गरम ही हो जाय । फिर अब्बा को अप्पा कहना किस नियम से होगा! हा आप्त से आप और अप्पा तथा आपा की सृष्टि हुई है, उसी को अरबवालो ने अब्बा मे रूपान्तरित कर लिया होगा। क्योकि उनकी वणमाला मे "पकार" (पे ) नही होती। सौ बिस्वा बप्पा, बाप, बापू, बब्बा, बाबा, बाबू आदि भी इसी मे निकले हैं क्योकि जैसे एशिया की कई बोलियो मे 'पकार' को 'बकार' व 'फकार' से बदल देते हैं, जैसे पादशाह-बादशाह और पारसा-फारसी आदि, वैसे ही कई भाषाआ मे शब्द के आदि मे बकार भी मिला देते हैं. जैसे बवते शब बवाते शब तथा तंग आमद-वतंग आमद इत्यादि, और शब्द के आदि को ह्रस्व अकार का कोप भी हो जाता है, जैसे अमावम का मावस ( सतसई आदि ग्रंथ मे देखो) हम्ब अकारान शब्दो मे अकार के बदले ह्रस्व वा दीर्घ उकार भी हो जाती है, जैसे एक-एकु, स्वाद-स्वादु आदि । अथच ह्रम्व को दीर्घ, दीर्घ को ह्रस्व अ, इ, उ आदि की वृद्धि वा लोर भी हुवा हो अरता है, फिर हम क्या न कहे कि जिन शब्दो मे अकार और पकार का पार्क हो, एवं अर्थ से श्रेष्ठता की ध्वनि निकलती हो वह प्रायः समस्त संसार के शब्द हमारे आप्त महाशय वा आप हो के उलट-फेर से बने हैं। ____ अब तो आप समझ गए न कि आर क्या हैं ? अब भी न समझो तो हम नहीं कह सकते कि आप समझदारी के कौन हैं ? हां, आप ही को उचित होगा कि दमडी छदाम की समझ किसी पंमारो के यहां से मोल ले आइए, फिर आप ही समझने लगिएगा कि "आप को हैं ? कहां के हैं ? कौन के हैं ?" यदि यह भी न हो सके और लेख पढ के आपे से बाहर हो जाइए तो हमारा क्या अपराध है ? हम केवल जी मे कह लेंगे "शाब ! आप न समझो तो आपा को के पड़ी छै।" ऐ ! अब भी नहीं समझे ? वाह रे आप! सं० ९ सं० ८ ( मार्च ह० सं० २) ......... .. । ग4-1