पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४४०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली छि क्या समझ है ! अरे बाबा! हमारी बातें मानने में योग्य होना और सकना आवश्यक नहीं है ! जो बातें हमारे मुंह से निकलती हैं वह वास्तव में हमारी नहीं है, और उनके मानने की योग्यता और शक्ति हम को तुम को क्या किसी को भी तीन लोक और तीन काल में नहीं है। पर इस में भी संदेह न करना कि जो कोई चुपचाप आंखें मीच के मान लेता है वह परमानंद भागी हो जाता है। हि हि ! ऐसी बातें मानने तो कौन आता है, पर सुन कर परमानंद तो नहीं, हाँ मसखरेपन का कुछ मजा जरूर पा जाता है। भला हमारी बातों में तुम्हारे मुंह से हि हि तो निकली ! इस तोबड़ा से लटके हुए मुंह के टॉकों के समान दो तीन दांत तो निकले । और नहीं तो मसखरेपन ही का सही, मजा तो आया। देखो, आँखें मट्टी के तेल की रोशनी और कुल्हिया के ऐनक की चमक से चौंधिया न गई हों तो देखो। छत्तिसो जात वरंच अजात के जूठे गिलास की मदिरा तथा भन्छ अभच्छ की गंध से अक्किल भाग न गई हो तो समझो। हमारी बातें सुनने में इतमा फल पाया है तो मानने में न जाने क्या प्राप्त हो जायगा। इसी से कहते हैं, भया मान जाव, राजा मान जाव, मुन्ना मान जावो। आज मन मार के बैठे रहने का दिन नहीं है । पुरखों के प्राचीन सुख संपत्ति को स्मरण करने का दिन है । इस से हंसो, बोलो, गाओ, बजाओ, त्योहार मनाओ और सबसे कहते फिरो-होली है ! हो तो ली ही है ! नहीं तो अब रही क्या गया है । खैर, जो कुछ रह गया है, उसी के रखने का यत्न करो, पर अपने ढंग से, न कि विदेशी ढंग से । स्मरण रक्खो कि जब तक उत्साह के साथ अपनी ही रीति नीति का अनुसरण न करोगे तब तक कुछ न होगा । अपनी बातों को बुरी दृष्टि से देखना पागलपन है । रोना निस्साहसों का काम है। अपनी भलाई अपने हाथ से हो सकती है । मांगने पर कोई नित्य डबल रोटी का टुकड़ा भी न देगा। इससे अपनपना मत छोड़ो । कहना मान जाव । आज होली है। ___हां हमारा हृदय तो दुदैव के बाणों से पूर्णतया होली ( होल- अंगरेजी में छेद को कहते हैं, उससे युक्त ) है ! हमें तुम्हारी सी जिंदादिली ( सहृदयता ) कहां से सूझे? तो सहृदयता के बिना कुछ आप कर भी नहीं सकते, यदि कुछ रोए पीटे दैवयोग से हो भी जायगा तो 'नकटा जिया बुरे हवाल' का लेखा होगा। इससे हृदय में होल (छेद ) हैं तो उन पर साहस की पट्टी चढ़ाओ। मृतक की भांति पड़े २ कांखने से कुछ न होगा। आज उछलने ही कूदने का दिन है। सामर्थ्य न हो तो चलो किसी होली ( मद्यालय ) से थोड़ी सी पिला लावें जिसमें कुछ देर के लिये होली के काम के हो जाओ, यह नेस्ती काम की नहीं। वाह तो क्या मदिरा पिलाया चाहते हो? बह कलजुग है । बड़े २ बाजपेयी पीते हैं। पीछे से बल बुद्धि, धर्म धन, मान प्रान सब स्वाहा हो जाय तो बला से ! पर थोड़ी देर उसकी तरंग में "हाथी मच्छर, सूरज