पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४४२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४१८ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली पथासामर्थ्य जी खोल के परस्पर को प्रसन्नता संपादन करने का दिन है। जो लोग प्रेम का तत्व तनिक भी नहीं समझते, केवल स्वार्थसाधन ही को इतिकर्तध्य समझते हैं, पर हैं अपने ही देश जाति के, उनसे घृणा न करके, ऊपरी आमोद प्रमोद में मिला के समयान्तर में मित्रता का अधिकारी बनने की चेष्टा करने का त्योहार है। जो निष्प्रयोजन हमारी बात २ पर मुकरते ही हों उन्हें उनके भाग्य के अधीन छोड़ के, अपनी मौज में मस्त रहने का समय है। इसी से कहते हैं, नई बहू की नाई घर में न घुसे रहो। पर्व के दिन मन मार के न बैठो। घर बाहर, हेती ब्यौहारी से मानसिक आनंद के साथ कटते फिरो-हो ओ ओ ली ई ई ई है।* खं० ९, सं० ८ ( मार्च ह• सं. ९) धोखा इन दो अक्षरों में भी न जाने कितनी शक्ति है कि इनकी लपेट से बचना यदि निरा असंभव न हो तो महा कठिन तो अवश्य है । जब कि भगवान रामचन्द्र ने मारीच राक्षस को सुवर्ण मग समझ लिया था तो हमारी आपकी क्या सामर्थ्य है जो धोखा न खायं ? बरंच ऐसी ऐसी कथाओं से विदित होता है कि स्वयं ईश्वर भी केवल निरा- कार निर्विकार ही रहने को दशा में प्रथक रहता है सो भी एक रीति से नहीं ही रहता, क्योंकि उसके मुख्य कामों में से एक काम सृष्टि का उत्पादन करना है, उसके लिए उसे अपनी माया का आश्रय लेना पड़ता है। और माया, भ्रम, छल इत्यादि धोखे ही के पर्याय हैं, इस रीति से यदि हम कहें कि ईश्वर भी धोखे से अलग नहीं है तो अयुक्त न होगा। क्योंकि ऐसी दशा में यदि यह धोखा खाता नहीं तो धोखे से काम अवश्य लेता है, जिसे दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि माया का प्रपंच फैलाता है वा धोखे की हट्टा खड़ा करता है। अतः सबसे प्रथक् रहने वाला ईश्वर भी ऐसा नहीं है जिसके विषय में यह कहने का स्थान हो कि वह धोखे से अलग है, वरंच धोखे से पूर्ण उसे कह सकते हैं, क्योंकि वेदों में उसे "आश्चर्योस्य वक्ता" "चित्रन्देवानमुदगातनीक" इत्यादि कहा है और आश्चर्य तथा चित्रत्व की मोटी भाषा में धोखा ही कहते हैं, अथवा अवतार धारण की दशा में उसका नाम माया-बपु-धारी होता है, जिसका अर्थ है-धोखे का पुतला, और सच भी यही है। जो सर्वथा निराकार होने पर भी मत्स्य, कच्छपादि रूपों में प्रकट होता है, और शुद्ध निर्विकार कहलाने पर भी नाना प्रकार की लीला करता है वह धोखे का पुतला नहीं है तो क्या है ? हम आदर के मारे उसे भ्रम से रहित कहते - - • 'निबंध-नवनीत' से उद्धृतः