पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४४७

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विलायत यात्रा]
४२३
 

विलायत यात्रा ४२३ हो करके हमारे लेख को भी, सच मानिए, अपनी बाइबिल के प्रमाणों में मिलाने रगेंगे। ऐसे समय पर कहीं हम बिलायत-यात्रा निषेध पर कुछ लिखें तो विद्युत् समाचार की नाई समस्त भूमंडल पर फैल जाय । हमको भी राजा, सर, ... ... .. श्री ईसाई .C.S.I.) की पदवी मिल जाय । पर भैय्या!... ..हम तुम्हें यह समझाते हैं कि साहिब लोगो के ही क्या रक्तमला ( सुर्खाब) का पंख लगा है जो उनके लेकचर और आर्टिक्लों को बिना मीमांसा ग्रहण कर लेते हो। इसमे तुम्हारा कल्याण नही है । 'यथा राजा तथा प्रजा' का अर्थ यह नहीं है कि साहिब लोगो की नाई आप की लड़की भी मिसें हो जायें। आप की रहन सहन मे खड़े हो के पपश्राव त्याग करना सभ्य समझा जाय। आप जो इतने प्रमाण श्री महाभारतादि वृहदितिहासो और श्री मद्भागवतादि महापुराणो से छांटते हैं कि हमारे पूर्वज बिलायत जाते थे, हमने माना, किंतु यह तो समझिए कि उन महापुरुषों ने जा के क्या २ किया था। किसी ने जा के अपनी व्यवहारविद्या फैलाई थी। आप उलटे वहीं की रोति नीति सोख आते हैं । उन लोगों ने वहां जा के अपने सनातन धर्म को विस्तृत किया था। आप वहाँ मे ईसाई हो के लोटत है। आपके पूर्वपुरुष झट से अन्य देशस्थ मनुष्यों को विडालाक्ष, कालयवन! मयदानव नाम धर लेते थे । आप ब्लैक, डेमड फूल बन के फूल से विल जाते हैं कि इन अधरों से भला इतना तो भी सुना । अभी तो आप इस बात पर हंमते होगे कि हम भी किस मुल्क में उत्पन्न हुए जहाँ के लोग जहाज पर नही चढते, जहाँ खड़े हो के नहीं मूतते,जहाँ लोग हाइड्म पार्क की सैर नहीं करते,जहाँ स्त्री स्वच्छंद नहीं विचरती, जहां कागज का एक काम तो लोगो को विदित ही नहीं, केवल लिखने छापने टोपी बनने आदि के ही काम में आता है इत्यादि । पर यह न समझते होगे कि हमारे देश की एक २ रीति पर चाहे और देश के आदमी असभ्यता का दोष आरोग्ण करें, किंतु कुछ नहीं, कही धूलि के उड़ने से भानु प्रतापहीन होते हैं । हाँ इतना तो हो जाता है कि भानु दिखाई न दें। पर ज्योही धूलि हटी त्यो हो भगवान् वैसे के वैसे ही । सिविल सर्विस है तो सविस हो न, फिर क्यों उसके लिए बिना बुलाए अपनी लक्ष्मी को समुद्र प्रांतों मे भेजें । एक सिविल सर्विस के लिए जितना स्पया क्य किया जाता है और एक साल जितने मनुष्य परीक्षा देने विलायत जाते हैं, उतने रुपयो के यदि हमारे देश मे कोई सद्व्यय होने लगे तो क्या ही आनंद का विषय है। सिविल सर्विस में रुपए व्यय कर के जब लोटोगे तो मिलेगी वही नौकरी। हमारा अभिप्राय यह नहीं (१) अरब का रहने वाला था। हर समय कालः हुतआला, कालः हुजैद कहा करता था । झट से महषियों ने 'कालयवन' नाम धर दिया। (२) फारस का रहने वाला था। जब कोई वस्तु चाहता था तो विदुर जी से कहता-"रंगे जदं म खाहम्" झट से मैं ( मय ) नाम पड़ गया। (३) हाइड्स पार्क-जहाँ से लज्जा योजन भर दूर रहती है। लंडन का एक बाग ।