पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४५२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४२८ [ प्रतापनारायण अंगावली रामदीन सिंह महोदय की रक्षा म होती तो यह पत्र ही न बन्द हो जाता बरंच सभी बातों में हमारा हौसिला ऐसे बढ़ जाता जैसे दुकान, जनेऊ और दीपक बढ़ जाता है ! पर उक्त क्षत्रियाम ने इस हतोत्साह दशा में सगर्व यह कहने का हियाव दे रक्खा है कि 'क्या शिकायत है न जाने कद्रगर अहले वतन । मेरी शुहरत ने किया है अब इरादा दूर का।' प्रिय सहयोगी को कदाचित विदित नहीं है कि हमें भी बाबू साहब आर्थिक सहा- यता थोड़ी नहीं देते, पर यह उनका स्वाभाविक गुण है इससे हमें धन्यवाद प्रदान की चिन्ता नहीं रहती। केवल सर्वसाधारण को इतना ही कई बार सूचित कर चुके हैं और अब भी विदित किए देते हैं कि :- हमारी अनुवादित वा लिखित किसी पुस्तक के छापने आदि का अधिकार श्री बाबू रामदीन सिंह साहब के सिवा और किसी को नहीं है। हमारे पास कृतज्ञता प्रकाश करने की और क्या सामग्री है ? और होती भी तो ऐसे निश्छल देशभक्त की कृपा की बराबरी कसे कर सकती ? सच तो यह है कि ऐसे मित्र साधारण भाग्यशालियों को नहीं मिलते। यदि देशवासी सहृदयताभिमानीगण ऐसों का भी उचित सन्मान करें तो देश का दुर्भाग्य है ! यह दुख रोना बहुत बढ़ गया है इससे इस निवेदन के साथ यही पर इतिश्री करते हैं कि हमने रोग और निर्बलता के कारण अब की बार का ता क्लेश कभी नहीं उठाया और अब भी चार महीने हो गए पूर्ण स्वास्थ्य के लक्षण नहीं देख पड़ते । जी किसी बात के लिए हुलसता ही नहीं है । इससे जो मित्रवर्ग हमारे लेखों से कुछ स्वाद पाते हैं और हमारे द्वारा कुछ देश की सेवा लिया चाहते हैं उन्हें अपने इष्टदेव से प्रार्थना करना चाहिए जिसमें हम नए वर्ष से उनकी प्रसन्नता संपादन के योग्य हो जायं । इधर हम दवा और परहेज तो कर ही रहे हैं, यदि कोई सम्बन पत्र द्वारा बीमारी का हाल पूछ के कोई सीघ्र गुणकारिणी परीक्षित औषधि बतलावैगे तो भी हम उनका बड़ा गुण मानेंगे, किमधिकं । खं. ९, सं० १२ ( जुलाई ह• सं० ९) नवपंथी और सनातनाचारी नवपंयो-नमस्ते साहब ! सनातनचारी-नमस्ते और साहब तुम होगे जी ! बीस बार समझा दिया कि हम साहब नहीं हैं, हम ब्राह्मण हैं, मानते ही नहीं ! नवपंथी-अच्छा बाबा, मूल गए माफ करो । नमस्ते महाशय कहा करें? सनातनाचारी-यद्यपि हम महाशय भी नहीं है, न ऋषि है, न राजा हैं फिर इतना बड़ा प्रतिष्ठित शब्द भी हमारे पक्ष में उपहासबोधक है क्योकि वास्तवतः हम साधारणाशय भी नहीं हैं। इस से यदि हम अपने मन से अपने को महाशय पम में तो