पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
गोरक्षा]
४३१
 

गोरक्षा ] ४३१ ऊपरवाला प्रश्न आप ही अपने जी से क्यों न कर देखिए । अन्तःकरण होगा तो आप उत्तर देगा कि सच्ची हितैषी और मौविकबाद के द्वारा परास्त करने की चेष्टा मे इतना अन्तर होता है। आज तक आप के यहां जितने शास्त्रार्थ देखने सुनने मे आए हैं उनमें आप ही धर्म को साक्षी दे के कहिए कि सत्य का उचित सन्मान किया गया है कि पालिसीवाजी से काम ? फिर क्या आप जानते हैं कि दूसरो को 'शाठ्यकुर्यात शठं प्रति' की चाल आती ही नहीं है ? ___ नव० --( मुसकिरा कर ) अच्छा भाई अब आगे से हमारी बातो को सचमुच सत्य ही के निर्णयार्थ समझिएगा। सना०-यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं है--'करतूतिहि कहि देत आप नहि कहिर सई'। यदि इस प्रतिज्ञा पर भी उचित बर्ताव हुवा तो यहां भी 'इंट के जवाब पस्थर' की कमी नहीं है। नव०-सो तो आप ही खुल जायगा । अच्छा अब मतलब की बातें हो। सना-जय गणेश । ____खं. ९, सं० १२ ( जुलाई ह. सं० ९) गोरक्षा गौ माता की महिमा इससे अधिक क्या वर्णन की जाय कि देवता पितर, मनुष्य स्त्री, लड़के बूढे सभी उनके अमृत समान दूध से तृप्त होते हैं। माननीया ऐसी हैं कि देश भर माता कहता है, जगत् पूज्य ब्राह्मण नाम के भी पहले स्मरण की जाती हैं- 'गऊ ब्राह्मण' । भगवान का नाम भी उन्ही के नाते गोपाल कहाता है। पवित्रता यह है कि उनका मल मूत्र तलक खाया जाता है। उपकार उनके अनंत हैं, स्वयं तथा संतान द्वारा मरते जीते लोक परलोक सब मे हित ही करती हैं। ऐसी २ बातें एक लड़का भी जानता है। फिर हम भी कई बार लिख ही चुके हैं, बार २ पिष्टपेषण मात्र है। यह बात भी पूर्णतया विदित है कि बीस वर्ष भी नहीं भए, धी दूध कैसा सस्ता था, और उसके खाने से अब भी जो लोग पचास वर्ष के कुछ इधर उधर हैं कैसे बली और रोगरहित हैं। वे अपनी जवानी की कथा कैसे अहंकार से कहते हैं कि आजकल के लड़के एवं नाजुकबदन रोगसदन जवान लोक सपने में भी उस प्रकार के सुख भोग के योग्य नहीं हो सकते ! जहाँ स्वादिष्ट और बलकारक भोजन तक स्वेच्छापूर्वक न मिले वहाँ और सुखो की क्या कथा है । ____यह भी अच्छी तरह सब जानते हैं कि प्रजावत्सल सर्कार इस विषय मे अपनी और से क्या हमारी विनय सुन के भी सहाय करतो नहीं दीखतो। बाजे २ हठो