पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४६

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मस्ती की बड़ रामहि केवल प्रेम पियारा । जानि लेई जो जाननहारा ॥ वाह रज्जा वाह ! धूम है तुम्हारी ! क्यों न हो, तुम भी एक ही हो । जब कि बड़े २ पुराने खुड्ढ तुम पर मोहित हो जाते हैं, बड़े बड़े भगत् तिलकधारियों के मुंड्ढ़, तुम्हारी चिकनी चुपड़ी बातों में आके, दीन दुनिया दोनों के खिलाफ काम कर उठाते हैं, बड़े २ पोथाधारी तुम्हारी खातिर के मारे अपना धरम करम सब हाथ से गवां बैठते हैं, तो क्यों न कहिए कि तुम में मोहिनी है । वाह, तुम्हें कोई हमारी आंखों से देखे ! क्या हुवा जो समय के फेर फार से तुम जमाने की आंखों से उतर गये हो, पर हमारी आंखों के सितारे तो फिर भी तुम्ही हो "अपनी नजरों में तो हो रश्के गुले खंदा तुम, खूब रु चश्मे स्वयाल में नहीं चंदा तुम" | कुछ परवा नहीं, दुनिया हमें थूके, सब भाई बिरादरी हमें नक्कू बनावै पर, " जाने मा हम तो तुम्हारे हो चुके" । पर हाय ! तुमने हमारी कुछ कदर न की। देखो, हमारी रोजी तुम्हारे पीछे गई । हमारी पुरानी इज्जत तुम्हारे लिए धूल में मिली । पर तुमने गरो की ग्बुशामद न छोड़ी न छोड़ी । मेरे प्यारे ! याद रहे कि फिर भी हमी तुम्हारे हैं । उन लोगों के बहुतेरे साथी तुम्हें धोबी का कुत्ता बनाते हैं। क्या फिर भी तुम उन्हीं की गुलामी करोगे? क्या फिर भी तुम हमसे फटे २ फिरोगे ? फिर भी तुम हमारे दोन दुनिया को जड़ काटोगे ? ऐसी उम्मैद तो न थी। देखो जले पर कहते हैं, यह बातें अच्छी नहीं है । क्या हुआ हमने कुछ न कहा, पर "सुन तो सही जहां मे है तेरा फिसाना क्या । कहती है तुझ को खल्के खुदा गायबाना क्या" । देखो बहुत थू थू न कराओ । याद रहे कि धरम की जड़ पाताल में है। जैसे हम अपने धरम में कायम हैं कि "इन जफाओं प यफा करते" ऐसे तुमको भी "आशिक प अपने लुत्फो इनायत चाहिए। शिव शिव ! हम भी कैसे नादान है कि तुम्हारे सब ढंग जानते हैं फिर भी तुम्ही पर मरे धरे हैं। -तुम को तो क्या कहें जो इतने बड़े हुए पर अपना पराया न समझे । म जाने वे तुमको कौन सी गद्दी सौंप देते हैं जो उन्ही के बने जाते हो । मुंह से वे भी राजा राजा कहते हैं, हम भी। माना कि जब तुम कुछ न थे तब उन्होंने तुम्हारे साथ सलूक किया था, पर यह तो सोचो कि तुम हो किस्के ? आखिर हमारे ही न । बड़ा ताज्जुब है कि फिर क्यों तुम में जिसीयत की तासीर कुछ भी नहीं है। नहीं नहीं, तुम एक छंटे 'मतलब के यार हो। हम मानते हैं कि 'बनिया किसी घात ही से गिरंगा"। पर ऐसी यात दो कौड़ी को क्या "नकटा जिया बुरे हवाल" । खैर अब भी कुछ नहीं हुआ है,