पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शैव सर्वस्व उपक्रम आजकल श्रावण का महीना है, वर्षारितु के कारण भूमंडल एवं गगनपंडल एक अपूर्व शोभा धारण कर रहे हैं, जिसे देख के पशु पक्षो, नर नारी सभी आनंदित हो। हैं । काम धंधा बहुत अल्प होने के कारण सब ढंग के लोग आनी २ रुचि के अनुसार मन बहलाने मे लगे हैं। कोई बागों मे झूला डाले मित्रो सहित चंद्रमुखियों के साथ मदमाती आंखों से हरियाली देखने में मग्न है, कोई लंगोट कसे भंग छाने व्यायाम मे संलग्न है, कोई भोर सांझ नगर के बाहर को वायु सेवन ही को सुख्ख जानता है, कोई स्वयं तथा ब्राह्मण द्वारा भगवान भूतनाथ के दर्शन पूजनादि मे लौकिक और पारलौकिक कल्याण मानता है ! संसार मे मांति २ के लोग हैं, उनकी रुचि भी न्यारी २ है । भक्त भी एक प्रकार के नहीं होते । कोई बगुला भात है अर्थाद दिखाने मात्र के भक्त, पर मन जैसे का तसा! कोई पेटहुल भक्त है, अर्थात् यनमान से दक्षिणा मिलनी चाहिए, और काम न किया पूजा ही सही ! कोई व्यवहारी भक्त हैं, अर्थात् 'या महादेव बाबा! भेजना तो छप्पन करोड़ की चौथाई ।' इन्ही मे वह भी हैं जो संसारी पदार्थ तो नहीं चाहते पर मुक्ति अथवा कैलाश- बास पर मरे घरे हैं ! कोई भगत जी हैं जो रास्ते मे को मंदिर में आंखें सेंकने ही को पूजा की आड़ पकड़ते हैं ! पर हम इन भक्ताभासों को कथा न कह के श्री विश्वनाथ विश्वंभर के सच्चे प्रेमियो के मनोविनोदार्थ कुछ शिवमूर्ति और उनकी पूजा पर अपना विचार प्रगट करते हैं। ईश्वर का नाम शिव है, यह बान वेद' से ले के ग्राम्य गोतो तक में प्रसिद्ध है । और मूनि पूजन हमारे यहां उस काल से चला आता है जिसका ठीक २ पता भी कोई नहीं लगा सकता ! जिस देश मे शिल्प विद्या का प्रचार और जहां लोगों के जी में स्नेह एवं सहृदयता का उद्गार होगा वहां मूर्तिपूजा किसी के हटाए नही हट सकती । मुहम्म- दीय मत जब तक अरब के अशिक्षितों में रहा तभी तक प्रतिमापूजन बचा रहा, जहां फारस के रसिकों में फैला झट 'शीया' संप्रदाब नियत हो गई। इसी प्रकार खष्टीय मत जब तक तुरकिस्तान में रहा,जहाँ के प्रेम की यह दशा कि खुद हज़रत ईसा को उनके चुने हुए बारह शिष्यों में से एक शिष्य यहूदाह इस्करोती ने केवल तीस रुपये के लोम में प्राण ग्राहक शत्रों के हाथ सौप दिया, ऐसे देश में मूर्तिपूजा क्या होती जहां साक्षात ही पूजा के काले पड़े थे। परंतु रूम में मसीही धर्म को आते देर न हुई कि परमात्मा मसीह की प्रतिकृति पुजने लगी, रोम्यन कयोलिक मत फैल गया । जब नये मतों की यह दशा है तो १-'यममकं यजामहे सुगंधम्पुष्टिमधनं' इत्यादि । २-'संकर महदेव सेवक सुर जाके' इत्यादि ।