पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४४४
[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली हमारे सनातन धर्म में मूर्तिपूजा क्यों न हो जहां प्रेम की उमंग में त्रियां तक जीती जल जाती रही हैं और शिल्प विद्या धर्मग्रंथ ( अथर्ववेद ) में भरी है। जहां राजाओं और बोर पुरुषों तक की मूर्ति का आदर है वहां देवाधिदेव महादेव की मूर्ति क्यो न पुजे ? यद्यपि आजकल अविद्या के प्रभाव से सब बातों के तत्व के साथ प्रतिमा पूजन का भी बत्व लोग मूल गए हैं पर जिन्हें कुछ भी इधर श्रद्धा है वे इस लेख पर कुछ भी ध्यान देंगे तो कुछ भेद तो अवश्य ही पावैगे। यह सब लोग मानते हैं कि ईश्वर निराकार है पर मनुष्य अपनी रुचि और दशा के अनुसार उसके विषय में कल्पना कर लिया करते हैं। जिन मतों में प्रतिमा पूजन का महा महा निषेध है उनके धर्मग्रंथों में भी ईश्वर के हाथ पांव नेत्रादि का वर्णन है, फिर हमारे पूर्वजों के लेखों का तो कहना ही क्या है जिनकी कल्पनाशक्ति के विषय में हम सच्चे अभिमान से कह सकते हैं कि दूसरे देश वालों को वैसो २ बातें समझनी ही कठिन हैं, सूझने की तो क्या कथा । उन की छोटी २ बातों में बड़े २ आशय हैं ( यह विषय दूसरी पुस्तक में लिखा गया है ) फिर यह तो धर्म का अंग है, इसका क्या कहना ! ___ तनिक ध्यान दे के देखिए तो निश्चय कह उठिएगा कि हां जिन्होंने पहिले पहिल यह बातें निकाली यो वे ब्रह्मविद्या, लोकहितषिता और सहृदयता में निस्संदेह जगत् भर के बुद्धिमानों के शिरोमणि थे। शिवालय, शिवमूर्ति अथव शिर्वाचन में सामाजिक, शारी- रिक एवं आत्मिक उपदेश इतने भरे हुए हैं कि बड़े २ बुद्धिमान बड़े २ ग्रंथ लिख के भी इतिश्री नहीं कर सकते, हमारी छोटी सी बुद्धि द्वारा यह छोटी सी पुस्तिका तो समुद्र में के जल कण के सदृश भी नहीं है। __ शिनालय की बनावट देखिए तो ऊपर का गुम्बद गोल होता है जिससे चाहे जितना जल बरसे कुछ क्षति नहीं कर सकता, इधर बूंद गिरी उधर भूमि पर आई । वर्षा में बड़े बड़े घर गिर जाते हैं पर कोई छोटी सी शिवलिपा कदाचित बहुत ही कम सुना होगा कि गिर पड़ी। इसके अतिरिक्त भूगोल खगोल गृह नक्षत्र सब गोल हैं और परमात्मा सपका स्वामी सत्र में व्याप्त है, यह बात भी शिवमंदिर में उपदिष्ट होते हैं । उसमें चारों ओर द्वार होते हैं जिनसे सदा स्वच्छ वायु का गमनागमन रहने से रोगो. स्पनि को सं बिना नहीं रहती । ऊपर से यह भी ज्ञात होता है कि परमेश्वर के पास जाने को किसी ओर से रोक नहीं है, सब मार्गों से वह हमें मिल सकते हैं । हिंदू धर्म, जयन धर्म, क्रिस्तानी धर्म, मुपलमानी धर्म सब के द्वारा हमारा प्रभु हमें मिल सकता है-"विनाम्बविश्याजुकुटिलनानापथजुषां नृणामेको गम्यस्त्वमसि पर्वसामर्णव इब"- केवल मिलने की इच्छा चाहिए। आगे चलिए तो पहिले बिना धार का धातु अथवा पाषाण निमित त्रिशूल देख पड़ेगा जिसके कारण शिवालय पर बिजली गिरने का कभी भय नहीं रहता। बड़े २ तत्ववेता (फिलासफर ) कहते हैं कि जिस मकान के पास लोहे कांसे आदि की लंबी छड़ गड़ी होगी उस पर बिजली नही गिर सकती क्योंकि १-इंजीक तथा कुरान आदि ।