पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४७१

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शैशव सर्वस्व]
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शैव सर्वस्व ] कलंक लगाते हैं। माता कह के विचारे बाप को दोषी ठहराते हैं, साकार कल्पना करके व्यापकता और निराकार कह के अस्तित्व का कोप करते हैं। हमारा यह लेख केवल उनके लिए है जो अपनी विचारशक्ति को काम में लाते हैं और जगदीश्वर के साप जीवित संबंध रख के हृदय मे आनंद पाते हैं तथा नाप लाभकारक बातों को समझ के दूसरों को समझाते भी हैं। प्रियवर ! उसकी सब बातें अनंत हैं अतः मूर्तियां भी अनंत प्रकार की बन सकती हैं । पर हमारो बुद्धि अनंत नहीं है इससे कुछ रीति की प्रतिमाओं का वर्णन करते हैं। यह भी सब जानते हैं कि अनंत की एक २ प्रतिकृति का एक २ अंग भी अनंत भाव, अनंत भलाई, अनंत सुख से भरा होना चाहिए पर हम अनंत नहीं हैं इससे थोड़ी ही सी बातों पर लेख का अंत करेंगे। मूर्ति बया पाषाण की होती है। इसका यह भाव है कि उनसे हमारा दृढ़ संबंध है। पदार्थों की उपमा पाषाण से दी जाती दी जाती है। हमारे विश्वास की नेव पत्थर पर है। हमारा धर्म पत्थर का है। ऐसा नहीं है कि सहज में और का और हो जाय । बड़ा सुभीता यह भी है कि एक बेर प्रतिमा पथराय दी, कई पीढ़ियों को छुट्टी हुई, चाहे जैसे असावधान पूजक आवे कुछ हानि नहीं हो सकती। धातु विग्रह का यह तात्पर्य है कि हमारा प्रभु द्रवणशील अर्थात् दयामय है। जहां हमारे हृदय में प्रेमाग्नि धधकी वहीं वुह हम पर पिघल उठे । यदि हम सच्चे तदीय हैं तो वुह हमारी दशा के अनुसार हमारे साथ बर्ताव करेंगे। यह नहीं कि ईश्वर अपने नियम पालन से काम रखता है, कोई मरे चाहे जिए। रतनमयो प्रतिकृति का यह अर्थ है कि हमारा ईश्वरीय संबंध अमूल्य है। जैसे पन्ना पुखराज आदि की मूर्ति बिना एक गृहस्थी भर का धन लगाए हाथ नहीं आती, यह बड़े अमीर का साध्य है, वैसे ही प्रेमस्वरूप परमात्मा ही हमको सभी मिलेंगे जब हम ज्ञानाज्ञान का सारा अभिमान खो दें। यह भी बड़े ही मनुष्य का काम है । मृत्तिकामयी प्रतिमा का प्रयोजन है कि उनकी सेवा हम सब ठौर कर सकते हैं। जैसे मट्टो और जल का अभाव कहीं नहीं है ऐसे ही उनका वियोग भी कही नहीं है । धन और गुण का भी उनके मिलने में काम नहीं है। वे निरधनों के धन हैं। जिसे जीवनयात्रा का कोई सहारा नहीं वुह मट्टी बेंच के पेट पाल सकता है । यो ही जिसे कहीं गति नही उसके सहायक कैलाशवासी हैं। सब पदार्थ का आदि मध्यावसान ईश्वर के सहारे है। इस बात का दृष्टांत भी मृत्तिका ही पर खूब घटता है। इसके 'अतिरिक्त पार्थिवेश्वर का बनना भी बहु सहज है। लड़के भी माटी मान के निर्मान कर लेते हैं। यह इस बात की सूचना है 'हुनरमंदी से पूछे जाते हैं वा बेहुनर पहिले। गोबर का स्वरूप यह प्रकट करता है कि ईश्वर आत्मिक रोगों का नाशक है । हृदय मंदिर को कुवासना रूपी दुगंध वही दूर करता है।