पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४७६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४५२ [ प्रतापनारावण-संपावली के लिए है। बिस ने चारों ओर से अपना मुख फेर लिया है वही प्रेममय मुख का दर्शन पाता है। तीन नेत्र से यह अभिप्राय है कि वह त्रैलोक्य एवं त्रिकाल के लोगों के त्रिगुणात्मक (साविक, राजस, तामस ) तीनों प्रकार के ( कायिक, वाचिक, मानसिक ) भावों को देखते हैं । सूर्य, चंद्रमा, अग्नि उनके नेत्र हैं अर्थात् उन का विचार करने वाले के हृदय में प्रकाश होता है। उन की आंखों देखने वाले ( सर्वथा उन्ही के आश्रित) को बानंद मिलता है । शीतलता प्राप्त होती है। उन के विमुख बला करते हैं। या यों समझ लो कि वे आंख उठाते ही हमारे पाप ताप शाप दुःख दुर्गुण दुराशा सबको भस्म कर देते हैं। उनके मस्तक पर दुइज का चंद्रमा है अर्थात् जो कोई अपने को महाक्षीण, अति दीन समझता है, 'पापपीनस्य दीनस्य कृष्ण एवं गतिमम्' जिसके मन बचन से सदा निकला करता है वही भगवान को शिरोधार्य है-'बंदी सीताराम पद जिन्हें परम प्रिय खिन्न'! यही भाव कपाल माला से भी है ! जो जीते हुए मृतकवत रहते हैं अर्थात् अपने जीवन को कुछ समझते ही नहीं, पराए लिए निज प्राण तृणवत् समझते हैं, वही लोग उनके गले का हार हैं। चिता भस्म सदृश अपने को निरा निकम्मा महा अपावन समझो तो वुह तुम्हें अपना भषण समझेंगे। जब तुम सच्चे जी से अपने पापों को स्वीकार कर लोगे, गदगद स्वर से कहोगे कि 'हे प्रभो! हम सर्प है। संसार के देखने मात्र को ऊपर से चिकने २ कोमल २ बने रहते हैं पर भीतर ( हृदय में ) विष ( कुबासना ) ही भरा है, 'मो सम कौन कुटिल बल कामी । तुम से काह छिपी करुनानिधि सब के अंतरजामी ।।' इत्यादि कहने ही से वुह तुम्हें अपनावेंगे। यदि हमको यह अभिमान हो कि हम पूरे नक्षत्र नायक के समान कीर्तिमान हैं तो संसार को चाहे जैसी चमक दमक विखा लें पर है वास्तव में कलंकी ! हमारा अस्तित्व दिन २ क्षीण होने वाला है। ऐसे अहंकारी को भोलानाथ कभी अंगीकार न करेंगे, उसी को निष्कलंक बनावेंगे, जो शथि सम होने पर भी दीनता स्वीकार करे। चंद्रशेखर नाम का वह भी भय भाव है कि 'चद् नालादने' धातु से चंद्र शब्द बनता है और सब सुख प्रेम ही में होता है। एवं नित्य वर्द्धमान, निष्कलंक, अमृतमय होने से द्वितीया के चंद्रमा से प्रेम का सादृश्य भी है इस से यह अर्थ हुआ कि जिसके गुणों का सर्वोपरि भूषण प्रेम है वहीं चंद्रमौलि है ! शिव चिताभस्मधारी हैं इस से उन के उपासक भी भस्म लगाया करते हैं जिस से बहुतेरे डाक्टरों के मतानु- पार शरीर के अनेक रोग नाश होते हैं और बिजली शक्ति बढ़ती है । आत्मा को भी लाभ हो सकता है कि जब २ अपने शरीर को देखेंगे तब २ प्रभु के चिता भस्म लेपन की सुध होगी और चिता का ध्यान होते ही संसार की अनित्यता का स्मरण बना रहेगा। अगले बुद्धिमानों का बचन है कि 'ईश्वर और मृत्यु को सदा याद रखना