पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४८०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली निर्धनों का बन हैं, उन्हें केवल सहज में मिलने वाली वस्तु भेंट कर दो वे बड़े प्रसन्न हो जायंगे, क्योकि अकृत्रिमता उन्हें प्रिय है। दूमरे, बिल्वपत्र चढ़ाने का भाव 'दलं त्रिगुणाकार' इत्यादि श्लोक ही से प्रगट है । अर्थात् सतोगुण रजोगुण तमोगुण, जो हमारी आत्मा के अंग हैं, उन को भेंट कर देना यहाँ तक उनसे दूर रहना कि उन्हें शिव निर्माल्य बना देना! जैसी कि भगवान कृष्णचंद्र को आज्ञा है-'निस्त्रगुण्यो भवार्जुन', अर्थात् अपनापन उसी पर निछावर कर देना। बस यही तो धर्म की पराकाठा है। तीसरे, मूर्ति को चढ़ी हुई वस्तु नहीं ली जाती। इस का प्रयोजन यह है कि हमारा उन का कुछ व्यवहार तो हई नही कि लोटा लेने के लिए कोई वस्तु देते हों। वे तो हमारे मित्र है 'प्रान्नोमित्रः'। और मित्र को कोई वस्तु भेंट कर के फेर लेना क्या। चौथी बात है गाल बजाना, जिस का तात्पर्य पुगणों में सबने सुना होगा कि दक्ष प्रजापति के यज्ञ में शिव का भाग न देख के जब सतीजी ने योगानल में अपनी देह दाह कर दी तब शिव के गणों ने यज्ञ विध्वंस कर डाली और अशिव यात्रक (दक्ष) का शिर काट के हवन कुंड में स्वाहा कर दिया। पीछे से सब देवताओं की रुचि रखने को उस के धड़ में बकरे का शिर लगा के पुनर्जीवन दिया गया और उस ने उसी मुम्ब से स्तुति की। इसी के स्मरण में आज तक गलमंदरी बाई जाती है। इस आख्यान में दो उपदेश हैं। एक तो यह कि सती अर्थात् पूजनीया पतिव्रता की स्त्री है जो अपने प्यारे पति की प्रतिष्ठा के आगे सगे बाप तथा अपने देह तक की पर्वा न करे । वही विश्वेश्वर की प्यारी होती है। दूसरे यह कि शिव विमुख हो के अपनी दक्षता का अभिमान करने वाला यज्ञ भी करे तो भी अनर्थ ही करता है। वह प्रजापति ही क्यों न हो पर वास्तव में मृतक है, पशु है वरंच पशु से भी बुरा नर के रूप में बकरा है। यह तो पुराणोक्त ध्वनि है, पर हमारी समझ में यह आता है कि जिन कल्याणकारी हृदयबिहारी की महिमा कोई महर्षि भी नहीं गान कर सकते, वेद स्वयं नेति २ कहते हैं, पुष्पदंत जी ने जिनकी स्तुति में यह परम सत्य वाक्य लिखा है कि- काजर के घिसि पर्वत को मसि भाजन सर्व समुद्र बनाये। लेखनि देवतरून को डारहि कागद भूमिहि को ठहरावै। या विधि सारद क्यों न प्रताप सदा लिखिबे महं बैस चितावै। नाथ ! तहू तुम्हरी महिमा कर कैसेहु नेकहु पार न आ ॥ उन की स्तुति करने का जो क्षुद्र मानव विचार करे वुह गाल बजाने अर्थात् बेपर की उड़ाने के सिवा क्या करता है ? इसी बात की सूचनार्थ स्तुति के दो एक श्लोक पढ़ के गाल से शब्द किया जाता है कि 'महाराम! तुम्हारी स्तुति तो हम क्या कर