पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सु चा ल . शिक्षा पहिला पाठ पढ़ना और गुनना इस में कोई संदेह नहीं है कि पढ़ना बहुत ही अच्छी बात है,क्योंकि विद्या के बिना मनुष्य में और पशु में कोई भेद नहीं रहता। जो लोग पढ़े लिखे नहीं हैं वे चाहे जैसे धनी क्यों न हों पर अपने छोटे २ कामों के लिए दूसरों का मुंह ताका करते हैं, बरंच व्यय करने की ठीक रीति जानने के कारण थोड़े ही दिनों में सारी जमा जथा खो बैठते हैं और फिर तीन चार रुपए महीने की नौकरी के लिए इधर उधर मारे २ फिरने लगते हैं, तथा जिन के पास धन नहीं है और पदमा लिखना भी नहीं आता उन्हें तो बड़ी ही कठिनता के साथ जीवन बिताना पड़ता है। केवल सूखी रोटी से अपना तथा कुटुम्ब का पेट भरने के लिए गाड़ी खीचने, बोझा ढोने वाले इत्यादि की दशा देख के किस को निभय न होता होगा कि विद्या विहीनः पशुः' ! बरंच पशु तो बहुत से होते हैं जो अपने नख दन्तादि को सीणता के कारण अपनी जाति के राजा कहलाते हैं। सिंह का नाम मृगराज वा बनराज इसी से प्रसिद्ध है कि वह अपने बल और फुर्ती के कारण सारे पशुओं को दबा देता है । इसके अतिरिक्त कितने हो पशुजों के दूध गोबर आदि से लाखों लोगों का उपकार होता है। कितनों हो के स्वादिष्ट एवं बलकारक मांस अथवा सुन्दर चर्म, लोम, नख इत्यादि बहुतेरों के बहुत काम आते हैं। यह भी न हो तो उन्हें अपने निर्वाह के लिए केवल थोड़ी सी घास भूसा इत्यादि बस हैं। शीतोष्ण से बचने को उन का शरीर ही रस्त्रादि से सज्जित है, पर मनुष्य में यह कोई बात नहीं होती, उसके शरीर का कोई अवयव किसी काम का नहीं। केवल विद्या बुद्धि और सुचाल हो से उसकी प्रतिष्ठा है। यदि वह न हुई तो उस की दशा पशु से भी गई बीती है। इस से विद्या के लिए परिश्रम करना मनुष्य मात्र का मुख्य कर्तव्य है। क्योंकि वह विद्या ही है जो हृदय की आँखें खोलती है, घर बैठे समस्त भूगोल और खगोल के कौतुक दिखाती रहती है। लाखों वर्ष की बीती हुई घटना आंखों के भागे ला रखती है। विपत्ति से बचे रहने और देशकाल पात्रादि के अनुकल आचरण करने का मार्ग बतलातो है तथा संसार के समस्त सुखों का तो कहना ही क्या है, परमानन्दमय परमेश्वर तक की प्राप्ति में सहारा देतो है । पर स्मरण रखना चाहिए कि इस दिव्य रत्न का मिलना तभी तक संभव है जब तक लड़कपन है और सब प्रकार का संभार करने वाले माता पिता जीते जागते हैं। जिस समय अपना निर्वाह अपने हाथ करमा पाता है और संसार भर की चिंता शिर