पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४९२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[प्रतापनारायण-पंचायती आवश्यक है। और इस बात की तो बड़ी ही भारी आवश्यकता है कि दिन घर के कामो का स्मरण कर के यह विचार लिया जाय कि कौम काम मच्छा बन पडा है कौन बुरा, तथा कल से किस २ काम को छोड़ देने बोर पिस २ का विशेष यत्न करने में कटिबद्ध रहना चाहिए । रात्रि को पढना लिखना नेत्रो के लिये हानिकारक है, पर यदि बड़ी ही मावश्यकता हो तो सरसो अथवा अरंड के तेल की उजियाली में पढ़ लिख ले । किंतु उतने ही काल तक जितने मे आंखो मे झिलमिलाहट न आवै । यो ही सोते से उठ कर जल पीना भी दूषित है । पर यदि बहुत ही प्यास हो तो नाक के निश्वास को रोक के घोडा सा पी ले किंतु यह स्मरण सखे कि ऐसा काम करना महा निषिद्ध है जिस के कारण नीद भूख प्यास आदि नित्य की अपेक्षा अधिक सताव वा इन के रोकने की अधिक आवश्यकता पड़े। क्योकि प्रकृति के किसी वेग को रोकना ही सब बिकारो का मूल है । बस इन नित्य कर्मों के नियम न बिगड़ने पावै तो कभी किसी रोग की संभावना नहीं है। यदि ऋतु आदि के बिकार से कुछ हुआ भी तो इतनी हानि न पहुँचायेगा जितनी नियम के विरुद्ध चलने वालो को होती है । इस से इन के साधन मे सदा सर्वथा सावधान रहना चाहिए और निर्वाहोपयोगी कार्यों मे आलस्य तथा दूसरो को प्रतीक्षा न करनी चाहिए इस प्रकार के स्वभाव बहुत ही बुरे हैं कि प्यासे बैठे हैं, जब सेवक थवा छोटा भाई ही पानी ले आवै तो पिएं। नहीं, सब काम सदा अपने हाथ से करन मे उद्यत रहना चाहिए तभी शरीर नीरोग, मन और बुद्धि स्फूतिमती रहेगी। फिर बस जो करना चाहिएगा आनंद से कर लीजिएगा और जो काम आ पड़ेगा सहज ही सा जान पडेगा। क्योकि देह की शिथिलता और परिश्रम का अनभ्यास न होगा तो किसी काम मे बाधा नहीं पड सक्ती। इसी से सब बातो के पहिले नित्य क्म को नियमबद्ध रखना परमावश्यक है। तीसरा पाठ साधारण व्यवहार नित्यकर्मों के साथ साधारण व्यवहारो पर भी बहुत ही ध्यान रखना चाहिए । इनका भी नियम भंग होने से यद्यपि साधारणतः कोई बड़ी हानि नहीं देख पड़ती, पर वस्तुतः है बहुत ही बुरा। एक न एक दिन इस रीति की उपेक्षा के कारण कोई मात्मिक, शारीरिक वा सामाजिक क्षति ऐसी होती है कि जिस का चिरकाल एक चित्त को खेद बना रहता है। इसलिए जो लोग अपने जीवन को उत्तम बनाया चाहते है, उन्हे इस विषय मे सावधान रहना उचित है । यह सावधानता अपने तथा अपने सम्बन्धियो के मन की प्रसन्नता और समय पहने पर परस्पर का साहाय्य प्राप्ति का बड़ा भारी भंग है। साधारण व्यवहार से हमारा अभिप्राय उन कामो से है जो