पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४९५

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सुचाल-शिक्षा]
४७१
 

सुचाल शिक्षा ] ४७१ चाहे वह शत्रु भी हो। कोई अपनी हो दुर्बुद्धि वा दुष्कृति के कारण दुःख में पड़ा हो, तो भी उसे उपालम्न की भांति उपदेश न कीजिए, सामर्थ्य भर सहानुभूति हो दिग्वलाइए। कोई अपने साथ दुष्टता करे तो यदि उसके कारण धन और मान पर आंच न आती देख पढ़े, तो क्षमा कर दीजिए। पर दूसरों के प्रति दुराचरण करते देख कर कभी उपेक्षा न कीजिए। कोई कुछ कहे तो सुन अवश्य लीजिए, पर कीजिए वही जो अपनी और चार अनुभवियों की समझ मे अच्छा जान पड़े। कोई समझ बूझ कर सदुपदेश न माने तो उसे शिक्षा देना व्यर्थ है। कोई किसी विषय में सम्मति मांगे वा पंच ठहरावै तो बहुत सोच विचार के उचित उपाय बतलाइए और बड़ी सावधानी से निर्णय कीजिए। कोई दो चार बार धोखा दे तो फिर उसे मुंह मत लगाइए चाहै वह कैसे हो पुष्ट प्रमाणों के साथ मित्रता दिखलावे। कोई मुंह पर स्पष्ट शब्दों में दोष वर्णन कर दे तो उस पर क्रोध न कीजिए, क्योंकि वह पद्यपि अशिष्टता करता है पर किसी समय उससे प्रवंचन की सम्भावना नहीं है । कोई रोग, विपत्ति वा उन्माद ( नशा ) की दशा में कुवाक्य कह बैठे तो उस पर ध्यान न दीजिए, क्योंकि वह अपने आप में नहीं है। कोई उपहास वा विवाद की रीति से धर्म अथवा कुलरीति के विषय में कुछ पूछ तो कभी न बतलाइए। जिस से मित्रता हो उस के साथ लेन देन कभी न कीजिए । जिस के साथ नया २ परिचय हुआ हो उस से निस्संकोच बवि न कीजिए। जिस से किसी प्रकार का काम निकलता हो उसे रुष्ट करना नीति विरुद्ध है। जिस ने एक बार भी उपकार किया हो उस का युण सदा मानना चाहिए, बरंच प्रत्युपकार का समय आ पड़े तो कभी चूकना उचित नहीं । जिस का बहुत लोग सम्मान करते हों अथवा डाह करते हों पर कुछ कर न सकते हों उस के साथ यत्नपूर्वक जान पहिचान करनी योग्य है। जिस की अवस्था वा दशा अपने से न्यून हो उस के सम्मुख अपने बराबर वाले से स्वच्छंद सम्भाषण न कीजिए। जिस के पेट में बात न पचती हो उस के आगे अपना वा मित्रों का कोई भेद न खोलिए । जिस को अपने लाभ के लिए पराई हानि का विचार न रहता हो उस से सदा दूर रहना उचित है । जिस के पास बैठने में लोकनिंदा वा खुशामदी कहलाने की शंका हो उस से प्रयोजन से अधिक कुछ सम्बन्ध न रखना चाहिए। जिस का मन वचन और कर्म एक सा हो, वह कोई हो, कैसी ही दशा में हो, पर है आदरणीय । जो काम आज के करने का है उस को कल के लिए छोड़ देना ठीक नहीं। जो कुछ अपने किए न हो सके वह यदि दूसरे भी न कर सकें तो उन पर हंसना न चाहिए । नो दोष हम में है वही यदि दूसरे में भी हो तो उस की निंदा करना न्याय है। जो पुरुष अपने पुराने संबंधियों से खुटाई कर चुका हो उस से भलाई की आशा करनी मूर्खता है। जो बातें बीत गई हैं उन का हर्ष शोक वृथा है। बुद्धिमान को वर्तमान और भविष्यत पर पूरी दृष्टि रखनी चाहिए। जो काम करना हो उसकी रीति और परिणाम पहिले विचार लेना उचित है । ज अपना कोई भेद न छिपाता तो उस से छल करना महा निषिद्ध है। जो सब की हाँ में हाँ मिलाया करता हो उसे अच्छा समझना