पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४९६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४७० [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली समझदारी नहीं है। जो किसी स्त्री अथवा बालक पर कठोराचरण करे उसे राक्षस समझना चाहिए। जो धर्म न्याय वा पराए हित का मिष कर के अधर्म अन्याय अथवा स्वार्थ साधन करे, उस को दूसरे पापी अन्यायो और स्वार्थपरायणों से अधिक तुच्छ नानना उचित है। धन, बल, मान और समय का छोटे से छोटा भाग भी व्यर्थ न खोना चाहिए। स्वास्थ्यरक्षा के लिए धन और गौरवरमा के हेतु जीवन का मोह करना अनुचित है। प्रबल दुष्ट के हाथ से किसी निरपराधी को बचाने के निमित्त झूठ बोलना या छल करना अयोग्य नहीं है। दूसरों के साथ हमें वैसा ही बर्ताव करना चा'हए जैसा हम चाहते हैं कि वे हम से करें। जब किसी काम से जी उकता जाय तो कुछ काल के लिए उसे छोड़ कर मनबहलाव मे संलग्न होना योग्य है । निर्धनों और मिन पढों को तुच्छ समझना बड़ो भूल है, उन्हें प्रीतिपूर्वक उन के हित की बात बतलाते रहना चाहिए इस में अपना भो बड़ा काम निकलता है। औषध और विद्या कभी किसी से छिपाना योग्य नहीं है। आपस वालों से विगाड़ करना सब से सडी मूर्खता है। जिन कामों को अनेक बुद्धिमानों ने बुरा ठहराया है, उन का कर डालना उतना बुग नहीं है जितना उन्हें चित्त में चिरस्थायी करना अच्छा काम जितना हो सके जितना ही उतम है। ऐसी २ बहत सी बातें हैं जो विद्या पढ़ने और मतमंग करने से आपही विदित हो रहेंगी, इससे हम यहां पर बढ़ाना नहीं चाहते, क्वल इतना हो फिर कहेंगे कि जान लेने से ठान लेना अत्यावश्यक है फिर इनका फल आपही थोड़े दिनों में प्रत्यक्ष हो जायगा, इससे इन्हें सदा सब कामों में स्मरण रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त जब किसी के घर पर जाने की आवश्यकता हो तो उस के भोजन शयन कार्य संलग्नता का समय बचा के जाओ और द्वार के अति संमुख खड़े होकर मत पुकारों, एक बार पुकार के कुछ काल टहर जाओ, इस रीति से दो तीन बार पुकारने पर उत्तर न मिले तो लौट आना उचित है। यदि घर के भीतर नाने का काम पड़े तो स्त्रियों से बड़े अदब के साथ नीची दृष्टि करके बोलों तथा ऐसे आसन पर न बैठो जिस पर उस गृह के बड़े बूढ़े लोग बैठते हों। जिस के यहां कुछ निमंत्रित लोग भोजन अथवा नृत्यादि के लिए एकत्रित हों उसके यहाँ बिना बुलाए जाना उचित नहीं है, तथा यदि कोई अपने यहाँ ऐसे अवसर पर बुलावै तो शयन भाजनादि ऐसो रोति से कर्तव्य है कि गृहस्वामी को कष्ट न हों और बातें भी ऐसी ही करनी चाहिए जो वहां के लोगों को अरुचिकारिणी न हो । यदि किसी को अपने यहाँ बुलाओ तो पहिले यह प्रबध कर लो कि उसे किसी प्रकार की असुविधा न होने पावै तथा यदि अपने को कष्ट हो तो उस पर विदित न होने पावै । जब दूसरे नगर में गाना हो तो आवश्यकता से कुछ अधिक धन, निर्वाह योग्य कपड़े और तथा एक छुरी, एक छड़ी, थोड़ी सी लिखने की सामग्री एवं दो एक मुद्रिका ( ऊंगली में ) अश्य साथ लेना चाहिए और जिसके यहाँ ठहरना हो उसे दो तीन दिन पहले से समाचार दे देना चाहिए रात्रि को उस के यहां जाना ठीक नहीं। दिन को भी स्नान