पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५०२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४७८ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली है कि दूसरों की दशा पर सन्ताप न कर के केवल प्राप्ति का उपाय करे । इस के अतिरिक्त मृगया रसिकों को यह भी उचित है कि पक्षियों और शशकादि छोटे जीवों के प्राण न ले कर सिंह, व्याघ्र, शूकर एवं हरिणादि हानिकारक ही जन्तुओं का दमन किया करें, क्योंकि वीरता और लोकहितैषिता इसी में है। इस के उपरान्त गाना और तैरना भी छुट्टी के समय सीखना चाहिए। यह भी निर्दोष मनोविनोद हैं, एवं चिता तथा विपत्ति में कभी २ बड़े उपकारक होते हैं। सामर्थ्य हो तो नगर नगरान्तर वा देश देशान्तर का पर्यटन भी करणीय हैं। और सब प्रकार के लोगों का रंग ढंग, रोति व्यवहार, जहां तक हो सके ज्ञातव्य है । इस से अनुभवशीलता की वृद्धि होती है । विद्या सम्बन्धिनी सभाओं में जाना भी आवश्यक है एवं पुस्तक कैसी ही हाथ पड़ जाय एक बार आद्योपान्त उसे देख लेना उचित है। फिर विचारशक्ति के अनुसार उसके आशय का त्याग या अंगीकार अपने आधीन है, पर पढ़ लेना कुछ न कुछ लाभ ही करता है । विशेषतः इतने प्रकार की पोथियां तो अवश्य ही देखनी चाहिएं, यथा- नीति के ग्रन्थ, क्योंकि देश काल पात्र के अनुसार निर्वाह करने का मार्ग इन्हीं के द्वारा जाना जाता है । इतिहास ग्रन्थ-क्योंकि संसार की गुप्त एवं प्रगट लीला यही दिखलाते हैं। प्रसिद्ध लोगों के जीवनचरित्र-क्योंकि जीवन को असाधारण बनाने की रीति इन्ही से जान पड़ती है। सामयिक राजनियम-क्योंकि इस के जाने बिना छोटे २ गृहकार्यों तक में भय बना रहता है। वैद्यक-क्योंकि इस के बिना अपना शरीर ही अपने हाथ नहीं रहता। प्रसिद सत्कवियों के लिखे हुए ग्रन्थ-क्योंकि सहृदयता इन के बिना आ ही नहीं सकती है जो सब सद्गुणों का आधार है। यों विद्या का अन्त नहीं है । और जिस प्रकार की विद्या जितनी अधिक आ सके उतना ही उत्तम है। किन्तु उपर्युक्त विद्याओं के बिना जीवन का प्रशस्त होना दुर्घट है। इससे इन का अभ्यास यत्नपूर्वक कर्तव्य है । और साथ ही यथसाध्य दूसरे लोगो मे इन का प्रचार भी करते रहना चाहिए । साधारण लोगों को समयोपयोगी बात बतलाते रहना, हित- कारक ग्रन्थों का सब के समझने योग्य भाषा में अनुवाद करते रहना भी योग्य हैं । इस के अतिरिक्त कोई न कोई हस्तकौशल भी अभ्यस्त करते रहना उचित है। क्योकि कभी २ यह विद्या से भी अधिक उपकारक होते हैं। यह सच है कि सब लोग सब पातें नहीं जानते, परन्तु जो अवकाश के समय को अच्छे प्रकार काम में लाया करते हैं वे बहुत कुछ जान जाते हैं। इस से हमारे पाठकों को यह ध्यान सदा बनाए रखना चाहिए कि समय मिलने पर सभी कुछ संग्राह्य है। कौन जानता है किस समय किस बात का प्रयोजन आ पड़ेगा। बस, यह धारणा बनी रहने से हमें वह ढर्रा प्राप्त हो जायगा जिस में पदार्पण करने मे जीवन सफल होता है ।