पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५०७

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सुचाल-शिक्षा]
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पड़ने पर कभी २ तुच्छ पदार्थों और सामान्य पुरुषों के द्वारा भी बड़े २ कार्य सिद्ध होते हैं अथच बड़े २ स्तुतिपात्रों से कुछ भी नहीं होता, बरंच आशा के विरुद्ध फल दिखाई देता है । अतः अनुभवप्राप्ति के उद्देश से सभी वस्तुओं का संग्रह और सभी लोगों से शिष्टाचार रखकर सभी के रंग ढंग देखते और गुणदोष विचारते हुए कालयापन कर्तव्य है और जिस समय जिस से जो काम निकलता देख पड़े निकाल लेना उचित है अथच अपने ऊपर जब जैसी दशा आ पड़े तब उसी के अनुकूल आचरण अंगीकार कर लेना योग्य है, किंतु किसी से संबंध रखने वाले भाव को हृदय में दृढ़स्थायी बनाना ठीक नहीं है । यह बात उन लोगों के लिये बहुत कठिन नहीं है जो अपनी विचारशक्ति से काम लेते रहने का अभ्यास रखते हैं। जब श्लाघनीय पुरुषों और पदार्थों के संमुख हुआ करें तब श्रद्धा और स्नेह का बर्ताव रखते हुए भी यह विचारते रहा करें वा दूसरों के द्वारा मानते रहने का ध्यान रखा करें कि उन में दोष क्या क्या हैं और उन के द्वारा हमारो कार्यसिद्धि में अड़चल कहां तक होनी संभव है। यों ही बुरों के साथ द्वेषबुद्धि न रख कर शिष्टता से काम लिया करें और साथ ही उन के गुण का भी ज्ञान प्राप्त करने में मचे हा करें। यों ही सुख मिलने पर उस की सामग्री को अचिरस्थायी समझ कर और दूसरे सुखच्युत छोगों की दशा देख कर तथा अपने से अधिक सुखियों की रहन सहन का विचार कर चित्त को समभाव में ले आया करें, एवं दुःख के दिनों में संसार की अनित्यता के विचार से आमोद प्रमोद के आश्रय से वा अधिक दुःखग्रस्तों को दीनता देखने से मन संतृष्ट कर लिया करें, अयच जिन कामों के करने की इच्छा न हो, किंतु बिना किए हानि की संभावना हो, उन्हें भविष्यत् लाभ का एक अंग मात्र समझ कर कर डाला करें, किंतु समय टलते ही फिर उस से अलग हो जाने में सन्नद्ध हो जाया करें । ऐसे २ उपायों से निश्चय है कि निलिप्त रहने का अभ्यास पड़ जायगा और आवश्यकता पर किसी रीति का अनुरोध न रहेगा तथा प्रशस्त जीवन में बड़ा भारी सहारा मिलेगा। क्योकि बड़े २ कर्तव्य कार्य प्रायः उन्हीं लोगों के किए होते हैं जो कुछ भी करने में रुकते न हों, सभी कुछ सहन कर सकते हों, सभी से सहायता लेना जानते हों और सदा सर्वत्र सब दशा में केवल अपना कार्य साधन मुख्य समझते हों । यह योग्यता तभी प्राप्त होती है जब सब के मध्य रहते और सब कुछ देखते भालते, करते धरते हुए भी निलिप्तता का पूर्ण अभ्यास हो।