पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५०९

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सुचाल-शिक्षा]
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सुचाल-शिक्षा ] ४८५ योग्य रुपया नहीं मिलता अथव जो लोग खाने पहिनने, देने दिलाने आदि में कंजसी करते रहते हैं, उन का ऐसी आवश्यकता के आ पड़ने पर पैसे २ पर जो निकलता है। इन दोनों प्रकार के पुरुष ऐसी अवस्था में जो कुछ करते हैं, सन्तुष्टभाव से नहीं करते, अतः बुद्धिमत्ता का कर्तव्य यही है कि जब जैसा आ पड़े तब तैसा ही बन जाने के लिए सन्नद्ध रहे । और यह तभी हो सकता है जब भिताचरण के द्वारा शरीर एवं अधिकृत वस्तु मात्रको रक्षित अथच कार्योपयुक्त रक्खा जाय । यद्यपि समय विशेष की उपस्थिति में जी खोल कर अपनी शक्ति से कहीं साहस धैर्य उद्योग उदारतादि का प्रदर्शन ही असाधारण पुरुषों का लक्षण है । इतिहास में वही लोग गौरवास्पद होते हैं का काम पड़ने पर अपने धन अथच प्राण तक का मोह न कर के कर्तव्य पालन का उदाहरण दिखला देते हैं। किन्तु ऐसा अवसर नित्य नहीं पड़ा करता, जीवन भर में दो ही बार वा बहुत हुआ तो दश पाँच बेर बित्त बाहर काम करने का समय आता है और उसीमें दृढ़ रहना जन्मधारण की सार्थकता का मादन करता है और ऐसे अवसर पर उचित आचरण वही दिखा सकते हैं जिनकी आंतरिक और बाह्य सभी प्रकार की पूंजी सर्वथा सुस्थिर हो और शनैः २ बढ़ती रहतो हो । यह योग्यता जिस में न हो, वह साधारण जनसमुदाय में भी गणनीय नहीं है। इसलिए उम की प्राप्ति के लिए पाठकगण को चाहिए कि शरीर के सभी अवयव! ओर मन को सकी शक्तियों से काम लेवे रहा करें, पर उतना ही जितने में अधिक थकावट न हो। अन्न वनादि मे व्यय भी इतना ही किया करें जितना सामर्थ्य के अन्तर्गत हो। दूसरों के साथ व्यवहार बर्तावनी इतना रक्या करें जितना सर्वदा निभ सके । नौ वाणा और वेश भो ऐमा ही रकबा करें जैसा कुल की मर्यादा के विरुद्ध और लोकममुदाय को अप्रिय न हो। नस, ऐमा ध्यान बना रखने और अभ्याम करते रहने से मिताबारी और सज्जीवनाधिकारी होने में कोई संशय न रहेगा और आवश्यकता के समय तानुकाल कार्यों की पूर्णकारिणी सामग्री का अभाव न रहेगा। नवां पाठ लोकलज्जा यद्यपि यह बात ठीक है कि संसार में सब के पक्ष में तीन प्रकार के लोग होते हैं, एक मित्र, दुसरे शत्रु, तीसरे सम अर्थात् न मित्र न शत्रु । उन में जो मित्र हैं वे हमारे अवगुणों को दूसरों से छिपावैगे और उचित रीति से हम भी उन से दूर रहने का यत्न करेंगे, तथा शत्रुजन गुण में भी दोष ही निकालेंगे। रहे सम, उन से हमें