पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५१२

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टसल पाठ अं निजत्व संमार में सुख सुविधा और मुगश प्राप्ति के अर्थ सभी प्रकार के लोगों से हेलमेल, सभी पापों का बोध तथा सभी देश के लोगों की रीति नीति का ज्ञान यथासम्भव प्रात या नाहिए। पर अपनी चालढाल कभी न त्यागनी चाहिए, क्योंकि प्रत्येक जाली मची शोभा उसी की भाषा भोजन भेष और बाहिक तथा आन्तरिक भाव एवं तृत्व से होती है। जो दन में से किसी का पूर्ण रूप से आदर नहीं करते, वे समा x मे यथोषित रीति से आहत नही समझे जाते । एवं बुद्धिमानों का एक अग्नण्डनीय fr: न्त बद्ध है कि कोई कैसा हो सुधान्य अय व लोकहितपी क्यों न हो, किन्तु यदि आव की दृष्टि मे आदरणीय न हृमा, नो बिडम्बना का पात्र होता है । बरंच ही म झ में उमे योग्रता ही नहीं करना चाहिए जिस के कारण अपनापन जाता रहें। यद हम विद्यावल, धन मान इत्यादि की वृद्धि कर लें किन्तु आत्मीयत्व खो दें, इयों के साथ रहने को किमी एक अंग में की योग्यता न बने तो हम ने : ..ति. -या को ? और अपनी ही माति से बंबित हुए तो जात्युनति वा देनि का करेंगे? जिस जात व देश का अधिकांग हमारी बातो को समझेगा न., हग रहन सहर को निकारक गिगा नी वह हमाग सम्मति ही क्यों मानने त ? और ऐमी. दशा मदि हम उस के मध्य तुछ उद्याग करें, तो या तो परिवादी कार्य जाया था थाई में हमारे ही सहतियों में साफल : का रूप दिखला के ह गा जैसा आजकल इस देश में देखने मे आता है कि बहुतेरे लोग देशोन्नति के वल हो एक अंगो की पृष्टता के निमित्त सहनों रुपया लगाते हैं, वर्षों दौड़ धूप करते हैं, सैकडो को यात्रा में धावमान रहते हैं, पर मनोरथसिद्धि पर्वत खोद के चुहिया ही निराला के बराबर देख पड़ती है। विचार कर देखिए तो ज्ञात हो जायगा कि इस का एकमात्र कारण यही है कि इन लोगों ने विद्यार्थित्व हो को अवस्था से निजत्व का विवार नही क्या और अब भी जातीयता का इतना प्रमत्व नहीं रखते जितना उचित है। इसी से देवल अपने ही रंग ढंग वालों से आदर पाते हैं और उन्हीं के मध्य अपनी योग्यता भी प्रकाशित कर लेते हैं । देश और जाति पर इन का प्रभाव यदि है भो तो न होने के बराबर, क्योंकि निजता का उन में प्रायः पूर्ण अभाव है। और इसी कारण तृतीश से अधिक देशवासियो मे से तो बहुतेरे उन का नाम भी नहीं जानते, बहुतेरे पहिले ना देखें तो उन्हें सजाताय न जानें, बहुतेरे उन को वोली बाणी न समझें, सो विदेशाप नाव से भरित होने के हेतु से आदर न करें, बहुतेरे यदि बातो पर श्रद्धा भी करें तो चरित्रों से घृणा करें, फिर भला ऐसों का प्रयत्न देश में क्योंकर सफल हो