पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५२७

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सुचाल-शिक्षा]
५०३
 

सुचाल-शिक्षा ] ५०३ ले कि फिर के न मिलैगा तो भी कोई विशेष हानि नहीं है। जैसे अपने नीचे उठ जाता वैसे इन के नीचे उठ गवा सही। पर ये बातें भी अत्यन्त आवश्यकता के समक की हैं, नहीं तो वापस में जहाँ तक हो सके लेने देने का नाम न लेना चाहिए भोर जिन के साथ कोई पूर्व सम्बन्ध न हो उन से काम पड़ने पर शील संकोच से काम क लेकर लेन देन स्वच्छ रखना चाहिए । इस में यद्यपि पहिले कुछ रुक्षता अवलम्पन करनी पड़ती है और इसी कारण कोई २ लोग कभी २ नाक भौंह भो चढ़ा लेते हैं, किन्तु कुछ ही काल के लिए। परिणाम में दाता और ग्रहीता दोनों का मंगल हो होता है, वरंच मापस का सुख प्यार सदा एक रस बना रहता है। और यदि दोनों बुद्धिमान हो तो नित्य २ वढ़ता रहता है। इसलिए हमारे वाचक वृंद को यह वचन सर्वकाल अनुसरणीय है कि "आहारे व्यवहारे च त्यक्तालज्जा मुम्वो भनेत्" । और सब विषयों में सुशीलता बहुत अच्छा गुण है, किन्तु यतः रुपया व टोर पदार्थ होता है, इस से उस के सम्बन्ध में उक्त गुण के द्वारा अनुकूलता न होने के कारण दोष उत्पन्न होने का भय रहता है, अतएव इस के व्यवहार में सदा सावधान ही रहना उचित है : नियम विरुद्ध रम छोटे से छोटा भाग भो अपने पास में चला जाय अथवा दुसरे के यहाँ से आ जाय तो यन्न पूर्वक फेर लेना और फेर देना ही श्रेयस. र है । नही तो म: सद्गुण लुप्त प्राय हो जाते हैं और उन के स्थान पर दोष ही दोप जुट जाते हैं। इस से अपना भला चाहने वालों को अन्य सब बातों से अधिक धन एवं द्वारा प्राप्य वस्त मात्र के व्यवहार को स्वच्छता पर ध्यान रखना चाहिए । अठारहवां पाठ स्वत्वसंरक्षण संसार मे जिन २ व्यक्ति और वस्तुओं का हमारे साथ निकटस्थ वा दूरस्थ संबंध है, उन सब का हम पर और हमारा उन पर कुछ न कु) स्वत्व हु-I करता है. जिस का उचित ज्ञान प्राप्त किए विना और तद्नुकूल आवरण रक्खे बिना व्यवहार सिद्ध में बड़ो भारी बाधा पड़ती रहती है। अतः इस बात पर भी सदा ध्यान रखना चाहिए कि किस का कितना स्वत्व है और तदनुगर उस के साथ हमे कैसा बर्ताव रखना उचित है। यद्यपि प्रत्येक के स्वत्व का ठीक २ समझना बहुत दिन के अनुभव बिना कठिन है किंतु प्राचीनकाल के बुद्धिमानों ने जो उस के लिए रोति ठहरा दी है, उस पर पूर्ण रूपेण दत्तचित्त रहने से प्रायः इस विषय में भूल नही पड़ती, अतः यहाँ पर हम दिग्दर्शन की भांति स्वत्व |णी को प्रकाशित किए देते हैं। सद्ग्रन्यावलोकन और सजन संगति के अभ्यासी जन उसी के अनुसार सब के स्वत्व का निर्धार कर. सकते हैं।