पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५४०

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( ५१४ ) बारह पृष्ठों के इस पत्र में लेखों, टिप्पणियों और कवितामों के अतिरिक्त कानपुर समाचार, विविध समाचार और पुस्तकों की समालोचना' भी छपती थी। कभी- कभी प्रहसन और संवाद भी छपते थे। अधिकतर रचनाएं पं० प्रतापनारायण मिश्र की रहती थी। श्री राधाकृष्णदास, पं. बालकृष्ण भट्ट और पं० श्रीधर पाठक भी कभी कभी इसमें लिखते थे। एकाध लेख भारतेंदु हरिश्चन्द्र और पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय के भी हैं। बांकीपुर से प्रकाशित होने के समय एक अंक में यह सूचना छपी थी कि इसमें अब और भी कई विद्वान लेख लिखेंगे । बांकीपुर जाने के बाद "ब्राह्मण' की पृष्ठ संख्या बढ़कर २४ हो गई थी। उस समय की प्रथा के अनुसार 'ब्राह्मण' में दूसरे लेखकों को कुछ रचनाएं बिना नाम के भी अवश्य छपी होंगी। कुछ के माम छपे थे-सर्वश्री बलभद्र मिश्र, कात्तिक प्रसाद मिश्र, गदाधर प्रसाद शर्मा, ललित कवि, मिजाजीलाल शर्मा, सीताराम, अम्बिका प्रसाद, काशीनाथ चौबे, कवि गोप, बद्रीदीन शुक्ल आदि। इनमें से ललित कवि पं. प्रताप नारायण के काव्यगुरु थे। पर वास्तव में पं० प्रतापनारायण ही अधिक लिखते थे और 'ब्राह्मण' की जान उन्ही की रचनाओं में है। कुल मिलाकर 'ब्राह्मण' सामान्य जनता का पत्र है। उसकी मानसिक गठन और शैली शिल्प में आभिजात्य कदम नहीं है । 'ब्राह्मण'--संपादक समान स्तर पर खड़ा होकर पाठक से ऐसी बेतकल्लुफो और आत्मीयता से बात करता है जिसकी मिसाल नही । 'ब्राह्मण' का मुख्य उद्देश्य सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं की ओर से पाठकों को जागरूक करना और उनका मनोरंजन करना है । उसकी शक्ति का स्रोत सामान्य जनता की सजीवता और कहावतों तथा मुहावरों की खान ग्रामीण-भाषा की प्रागवत्ता है। उसमें सहज अनगढ़ प्रतिभा की जो चुलबुलाहट और जागरूकता है वह उस समय के अन्य पत्रों में विरल है। हिंदी गद्य को सहब-सुगम और समर्थ बनाने में 'ब्राह्मण' का महत्व अप्रतिम है । 'ब्राह्मण' के लेखो के रूप-रंग का बहुत कुछ पता उनके शीर्षकों से ही लग जाता है-हो ओ ओ ली है ! देशोन्नति, मस्ती की बड़, फूटी सह आंजी न सहैं, हिम्मत राखो एक दिन नागरी का प्रचार हो होगा, प्रेम एव परो धर्मः, वाल्य विवाह विषयक एक चोन, देशो कपड़ा, एक, द, ट, भी, बात, आप, धोखा, नारी, बालशिक्षा, आल्हा-बाह्लाद, गोरक्षा, मरे का मार साह मदार, इस सादगी पर कौन न मर जाय ऐ खुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नही, कांग्रेस की जय, पड़े पत्थर समक्ष पर आपको समझे तो क्या समझे आदि । कविताएं प्रेम- संबंधी, भक्तिसंबंधी, सामाजिक, राजनीतिक, सामयिक--सभी तरह की हैं । लेखों की ही तरह व्यंगात्मकता और चुलबुलाहट अधिकांश्च कविताओं को प्रधान विशेषता है। 'ब्राह्मण' का वार्षिक चंदा सिर्फ १) और एक प्रति का दाम =) था फिर भी इसके सौ ग्राहक शायद ही कभी हुए हों। आर्थिक कठिनाइयों और संपादक की