पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५४२

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प्रस्तावना हम ब्राह्मण हैं। हमारे पूर्व पुरष अपने गुणों के कारण किसी समय सर्व प्रतिष्ठा के पात्र थे। उन्हीं के नाते आज तक हमारे बहुत से भाई काला अक्षर भैंस बराबर होने पर भी जगत गुरु, महाकुकर्म करने पर भी देवता मौर भीख मांगने पर भी महाराज कहलाते हैं। हम गुणी हैं वा औगुणी यह तो आप लोग कुछ दिन में आप नान लेंगे, क्योंकि हमारी आपकी नाज पहिली भेंट है । पर यह तो जान रखिये कि भारतवासियों के लिये क्या लौकिक क्या पारलौकिक मार्ग में एकमात्र अगुवा हम और हमारे थोड़े से हिन्दी समाचार पत्र भाई ही बन सकते हैं। हम क्यों आये हैं ? यह न पूछिये । कानपुर इतना बड़ा नगर ! सहस्रावधि मनुष्य को बस्ती !! पर नागरी पत्र, जो हिन्दी रसिकों को एकमात्र मनबहलाय, देशोन्नति का सर्वोतम उपाय, शिक्षक भौर सभ्यता र्शक अत्युच्च ध्वजा यहां एक भी नहीं। भला यह हमरे कब देखी जाती है ? हम तो बहुत शीघ्र आप लोगों की सेवा में आते और अपना कर्तव्य पूरा करते परन्तु अभी अल्पसामर्थी अल्पवयस्क हैं, इसलिए महीने में एक ही बार मा सकते हैं। हमारा आना आप के लिए कुछ हानिकारक न होगा, वरंच कभी न कभी कोई न कोई लाभ ही पहुंचावेगा। क्योंकि हम वह ब्राह्मण नहीं हैं कि केवल दक्षिणा के लिये निरी ठकुरसुहाती बातें करें । अपने काम से काम । कोई बने वा बिगड़े, प्रसन्न रहे वा अप्रसन्न । नहीं, अन्तःकरण से वास्तविक मलाई चाहते हुए सदा अपने यजमानों ( ग्राहकों ) का कल्याण करना ही हमारा मुख्य कम होगा। हम निरे मत मतान्तर के झगड़े की बातें कभी न करेंगे कि एक की प्रशंसा दूसरे की निन्दा हो। बरंच वुह उपदेश करेंगे जो हर प्रकार के मनुष्यों को मान्य, सब देव, सब काल में साध्य हो, जो किसी के भी विरुद्ध न हो। वुह चाल-ढाल व्यवहार बतायेगे जिनसे धन बल मान प्रतिष्ठा में कोई भी बाधा न हो। कभी राज्य सम्बन्धी, कभी व्यापार सम्बन्धी विषय भी सुनावेगे, कभी २ गद्य-पद्य-मय काव्य नाटक से भी रिझायेंगे। इधर उधर के समाचार तो सदा देहीगे। सारांश यह कि आगे की तो परमेश्वर जानता है, पर आज हम आपके दर्शन की खुशी के मारे उमंग रोक नहीं सकते इससे कहे डालते हैं- हमको निरा ब्राह्मण ही न समझियेगा, "जिस तरह सब जहान में कुछ हैं हम भी अपने गुमान में हैं।' इसके सिवा हमारी दक्षिणा भी बहुत ही न्यून है। फिर यदि निर्वाह मात्र भी होता न्हेगा तो हम चाहे जो हो, अपने वचन निबाहे जायेंगे आश्चर्य है जो इतने पर भी कोई कसर मसर करे ! हां, एक बात रही जातो है कि हम में कुछ औगुण भी हैं, सो सुनिए । जन्म हमारा फागुन में हुवा है, और होली की पैदाइश प्रसिद्ध है। कभी कोई हंसी कर बैठे