पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५४८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

५२२ [ प्रतापनारायण-उंचावली जिस तरह सब जहान में कुछ हैं हम भी अपने गुमान में कुछ हैं कुछ न सहो, पर कानपुर में कुछ एक बातें केवल हमी पर परमेश्वर ने निरभर को हैं, जिसकी कदर इस जमाने वाले नहीं जानते, पर हम न होंगे तब शोक करेंगे। यदि लोग हमको मूल भी जायंगे तो यहां की धरतो अवश्य कहेगी कि हम में कभी कोई खास हमारा था। पर आज यहां हमको यह सोच है कि हाय, कानपुर के हम कौन हैं, इतना भी कानपुर नहीं जानता! वहां इस बात का हर्ष भी है कि बाहर वालो की दृष्टि में हम निरे ऐसे ही वैसे नहीं हैं। बाजे २ लोग हमें श्री हरिश्चन्द्र का स्मारक समझते हैं । बाजों का ख्याल है कि उनके बाद उनका सा रंग ढंग कुछ इसी में है। हमको स्वयं इस बात का घमंड है कि जिस मदिरा का पूर्ण कुम्भ उनके अधिकार में था उसी का एक प्याला हमें भी दिया गया है, और उसी के प्रभाव से बहुतेरे हमारे दर्शन को, देवताओं के दर्शन की भांति, इच्छा करते हैं। बहुतेरे हमारे बचनो को रिषिधाक्य सदृश मान्य समझते हैं । बहुतेरे बड़े २ प्रतिष्ठिन शब्दो से नाम लेते हैं ! बहुतेरे हम पत्र लिखते हैं तो गद्यपत्रमय लेखों से अलंकृत करके लिखते हैं । इस ढंग के. पत्रो मे एक यह है, जिसके प्रेषक महाशय को हम जानते भी नहीं हैं । ___"मी युत कविकुल मुकुटमणि पंडितवर, हिंदी भाषा भूषण, प्रतिभारतेन्दु, रसिक- राज, श्री प्रताप नारायण मिश्र समीपेषु निवेदनमिदं- हे भाषाचार्य! मापसे हिन्दी भाषा वृहस्पति की स्तुति मुझ सा मंदमति क्या कर सकेगा ? नहीं ! नहीं !! नहीं !!! फिर बस !!! उस परम हृदयंगम विषय की इतिश्री यहीं सही !!! बापकी चमत्कृत कृति आपकी केवल एक ही पुस्तक 'प्रेम पुष्पावली' गे देवि पडो; पर उसके पढ़ने से मेरी प्रेमतृष्णा शतगुणित बढ़ी अर्थात् आपके अनेक रगमय लेख देखने की अत्युत्कट इच्छा प्रगट हुई है; सो तृप्त करना आपही से महाशयों का कान है। ___ अब मेरी मापसे इतनी ही बिनती है कि आपके समग्र लेस जो 'ब्राह्मण' पुस्तक में अयबा अन्यत्र प्रकाशित हुए हों सो पब इस पत्र के देखते ही 'वेल्यूपेएबिल पोस्ट द्वारा इस पते पर भेजिए, और अपना अद्वितीय पत्र 'ब्राह्मण' भी सदैव भेजा कीजिए । कोल्हापुर ___ आपका दासानुदास, २६-३-८८ रायसिंह देव बर्मा पता-राव साहब रायसिंह राव, स्टेट सरबेयर कोल्हापुर, हम ऋषि नहीं हैं कि अपनी स्तुति से प्रसन्न न हों, हम ऐसे बौड़म, उजड्ड, असभ्य नहीं हैं कि अपने दयालुओं को धन्यवाद आशीर्वाद न दें । हमारा उत्साह बढ़ता है और चित्त चाव होता है कि हमारे गुणग्राहक भी हैं ! और साधारण कोग नहीं, बड़े सत्पुरुष