पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५५१

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परिशिष्ट ] ५२५ प्रेमविवाहिता पतोहू को प्रेमपुरस्सर स्वीकार कीजिए ! अब आप हमारे समधी ठहरे, इसलिए इस बार प्रथम भेट आपके लिए पांच पया भेजता हूँ और अपने दामाद (अर्थात् 'ब्राम्हण') के वास्ते हर साल पांच से पचास तक दिया करूंगा, क्योंकि अपनी बालिका आपके हवाले की है । अब आप को भी यही उचित है कि अपने पुत्र का पूर्णोत्साह से प्रतिपालन करें, नहीं तो आपके माये ब्रह्महत्या तथा पुषहत्या का पातक बढ़ेगा। जन्म देना सहज है, पर उस जन्मे हुए का भरणपोषण प्रतिपालन करना परम कठिन है। यद्यपि मुझको दो ढाई सौ रुपया मासिक मिलता है तथापि बड़ा परिवार रहने के कारण आय-व्यय बराबर हो जाता है। नहीं तो मैं अकेला ही अपने दामाद को पोसता।' अस्तु यह प्रेमकहानी यही समाप्त करता हूँ। इस तुच्छतम लेख को यदि आप छापना चाहे तो शुद्ध करके छापें । आपका परम हितेच्छु- प्रेमदासानुदास रायसिंह देव वर्मा कोल्हापुर (दखिन) खंड ४, सं० ११ ( १५ जून, ह० सं० ४ ) १. पांच या पचास के लिये हाथ फैलाते हमें मजा आती है पर ऐसे प्रेम से कोई एक कोड़ी भी दे तो हम क्या है, शायद परमेश्वर भी हाथ पसार के लेंगे। दूसरा पांच हजार भी दे तो हम आज कल की सी दशा में ले तो लेते पर इस चाव से कभी न लेते, क्योंकि हम प्रेम-मिक्षुक हैं। [सं० प्रा०] २. ब्राह्मण को बंद करने में परमेश्वर साक्षो है कि हमें पुत्र-शोक से कम शोक न होगा, पर हत्यारे नादिहन्दों ने हमें लाचार कर दिया है। इसका सविस्तार हाल 'ब्रह्मघाती' नामक पुस्तिका में लिख रहे हैं। पर दो महीने बाद छपायेंगे। अभी इससे नहीं छपा सकते कि शायद पीछे से दो चार नाम काटने पड़ें। प्रा. को जिस तरह आज तक चलाया है हमी जानते हैं । [सं० ब्रा०] ३. सहृदयों और प्रेमियों का आय-व्यय तो सदा हो बराबर हो जाता है। रुपया जोड़ने के लिये चाहिए-धर्म कर्म, लना प्रतिष्ठा, आमोद प्रमोद, शील संकोच सब आले पर रख दिए जायं । सो प्रेम-सिलांती से हो नहीं सकता। [सं० ब्रा०] ४. हम कदापि नहीं ाहते कि कोई महाशय अकेले 'ब्राह्मण' का भार अपने माथे ले लें, पर केवल हमारे ही माथे रहना भी असह्य है। यदि कोई भी सचमुच कटो उंगली पर मूतने वाला होता तो हम क्यों झीखते। परमेश्वर राव साहब का भला करें जिन्होने हमें इस महा निराशा और निस्सहायता में सहारा दिया।