पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५२८
[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

५२८ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली सूचना जिन महाशों ने कृपापत्र भेजकर 'ब्राह्मण' मंगाया है उनको चाहिए कि यह अंक पाते ही दक्षिणा शोघ्र भेज दें नहीं तो आगामी मास में वेल्यु पेएबुल द्वारा ब्राह्मण' से भेंट होगी। मैनेजर ब्राह्मण प्यारे पाठको! जिस प्रकार 'सारसुधानिधि' इत्यादि उत्तमोत्तम पत्रों को नादिहन्द ग्राहकों ने भच्छ लिया उसी प्रकार 'ब्राह्मण' को भी प्रसना चाहते हैं, पर वह नहीं सोते कि ब्रह्मदोषी बनना हिन्दुओं के लिये कैसा है। हम उनमें से कुछ नाम यहां प्रकाशित करते हैं- [ यहां छः व्यक्तियों के नाम और पते प्रकाशित हैं।] ( 'ग्रंथावली' संपादक) खं० ६, सं० १० ( १५ मई, ह. सं. :) एक सलाह जिन लोगों को विश्वासघात करके पराई जमा हजम कर जाने में लना नहीं आती, जिन्हें थोड़े से द्रव्य के मोह से दूसरों की महान हानि होते देख के भी दया नहीं आती, जो लम्बी चौड़ी चिट्ठी लिख के और छाती ठोक के प्रण करने में वीर हैं पर निर्वाह करने के समय चार पैसा खर्चने में भी कंगाल हैं, जो अपनी बुरी आदतो के हाथ ऐसे बिक गए हैं कि अच्छे कामों के लिए भी एक डबल भी नहीं बचा सकते, जिन्हें सकाजा सहने की लत और प्रतिज्ञा तोड़ने की धत है, उनके लिए तो हमारे पास क्या ब्रह्मा जी के पास भी कोई औषध नहीं है, सिवा इसके कि नालिश कर के उनको उचित बदला दे दिया जाय और समाचार पत्रों में सच्ची २ कार्रवाई प्रकाश करके सर्वसाधारण को उनसे सावधान रहने की सूचना दे दी जाय । पर जिन लोगों को सचमुच देश की ममता और सद्गुणों का व्यसन तथा अच्छे कामों में सहायता करने की रुचि है पर आमदनी इतनी थोड़ी है कि मामूली खर्च से इतना भी नहीं बचता कि जिस देशोपकारिणी सभा के सभ्य हैं उसका मासिक चंदा और जिस उत्तम पत्र के ग्राहक हैं उसका वार्षिक मूल्य भी अन्वर के बिना दे मकें, इस दशा में उन्हें लज्जा अवश्य आती है, तकाजे का भय अवश्य लगता है, यह खयाल जरूर रहता है कि 'दूसरे हमें क्या समझेंगे'। पर करें क्या द्रव्य संकोच से लाचार हैं । सभा में जाना