पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५५९

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परिशिष्ट ] ५३३ हैं । हमें उनकी एक कौड़ो का भी रवादार नहीं बनाया वरंच उनके मुंह फेरते ही हमारे लिए तीन सहायक प्रस्तुत कर दिए । एक कोल्हापुर निवासी श्रीमान् रावसाहब रायसिंह देव वर्मा दूसरे दिल्लीवासी श्रीयुत जगन्नाथ भारतीय तीसरे श्रीमत् स्वामी मंगलदेव संन्यासी। सच पूछो तो हमारी टूटी हुई हिम्मत इन्ही सत्पुरुषों के उत्साह- प्रदान से तीन वर्ष तक कायम रही, नहीं तो हमें केवल अपनी इच्छा से वेगार भुगतना और हर साल जुर्माना देना कभी का असह्य हो गया होता। किंतु जब बरसों तक यह देखते रहे कि जिन लोगों के लिये सारी हाव २ की जाती है उनमें से बहुतों को यह भी ज्ञान नहीं है कि हिंदी हमारो कोन है अथवा 'ब्राह्मण' किस खेत की मूली है तो गत वर्ष यह दृढ़ विचार कर लिया था कि यह झगड़ा अब न रक्खें। किंतु हमारे परम हितैषी और हिंदी के सच्चे प्रेमी श्री मन्महाराजकुमार बाबू रामदीन सिंह महोदय ( खड्गविलास प्रेस बांकीपुर के स्वामी ) की अकृत्रिम दया और प्राकृतिक स्नेह के वश वर्ष भर तक फिर 'ब्राह्मण' ने जगजात्रा की। पर अब हम नहीं चाहते कि समय, संपत्ति और स्वतंत्रता नष्ट करके अपनी वाणी की विडंबना कराते एवं अपने थोड़े से सच्चे सहायकों को चिंता में फंसाते रहें। इससे 'ब्राह्मण' को ब्रह्मलोक भेज देना ही उत्तम समझते हैं । ग्राहक बढ़ाने और पत्र को स्थिर रखने में सब उपाय कर देने पर अंत मे यही जान पड़ा कि या तो हम देश की सेवा के योग्य नहीं हैं या देश ही हमारे गुणों को समझने की योग्यता नहीं रखता। फिर किस आसरे पर गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी पेट पीट के पीर उपराजने का ठान ठानें ? हां बीते हुए महीनों के लेखानुसार आयव्ययादि का प्रबंध हो जायगा अथवा दो चार वर्ष में फिर शौक चर्रायगा तो देखा जायगा । पर आज तो सात वर्ष का तमाशा देखते २ जी ऊब उठा है । यद्यपि उन लोगों से बिदा होते मोह लगता है जिनके साथ इतने ( अथवा कुछ कम ) दिनों संबंध रहा है और कभी कोई उलहने वाली बात नहीं आने पाई। पर क्या कीजिए समय का प्रभाव रोकना किसी का साध्य नहीं है। अतः छाती पर पत्थर रख के बिदा होते हैं और कोई सुने वा न सुने पर अपने धर्मानुसार चलते २ कहे जाते हैं कि- चहहु जु सांचहु निज कल्यान । तो सब मिलि भारत संतान || जपी निरंतर एक जबान । हिदी हिंदू हिंदुस्तान ॥ १ ॥ रोझै अथवा खिझै जहान । मान होय चाहे अपमान ॥ 4 न तजो रटिबे की बान । हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ॥ २ ॥ जिन्हें नहीं निजता को ज्ञान । वे जन जीवित मृतक समान ॥ याते गहु यह मंत्र महान । हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ॥ ३ ॥ भाषा भोजन भेष विधान । तजै न अपनी सोइ मतिमान ॥ बसि समझो सौभाग प्रमान । हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ॥ ४ ॥ धनि है वह धन धनि वे प्रान । जे इन हेत होहिं कुरबान ॥ यही तीन सुख सुगति निधान । हिंदी हिंदू हिंदुस्तान ॥ ५ ॥