पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५६२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली बनावै, जिस की आज बड़ी भारी आवश्यकता है ! और जब तक यह न हो तब तक धन्यवाद सन्यवाद का देना भी तथा चाहना भी गप्पातंते ! किन्तु हाँ श्रीमन्महाराज- कुमार बाबू रामटीन सिंह महोदय को धन्यवाद न देना कृतघ्नता है जिन्हों ने हिन्दी के प्रचारार्थ तन मन और बित्त बाहर धन उम दशा में लगा रक्खा है जब कि सद्ग्रन्थों के ग्राहक इतने भी नहीं हैं कि कनिष्टिका से लेकर अंगुष्ट तक तो गिने जायें। इस प्रत्यक्ष प्रमाण से यह तो एक बालक भी समझ सकता है कि धन बटोरने के लिए झूठ मूठ देश भक्ति के गीत नहीं गाते परन्तु सचमुच सद्विद्या रत्नका वितरण करना चाहते हैं और इस प्राकृतिक उदारता के पलटे मे अपनी न मवरी फैलाने की भी गुप्त अथवा प्रगट कार्रवाई नहीं करते वरंच दूमरो ही का नाम चिरस्थायी रखने के प्रयत्न मे लगे रहते हैं। भला ऐसे निःस्वार्थ देशवन्धु को कौन समझदार धन्यवाद न देगा ? विशेषतः हमारे साथ तो वह उपकार किया है जिमका पलटा हम दे ही नहीं सकते । लोग जिस से अपना स्वार्थ निकालना चाते हैं उससे बडी भारी बनावट के साथ कहा करते हैं कि ऐसा कर दोजिए तो हमे मानो मरते से जिला लीजिए' पर इस उदारचेता ने हमारी प्रार्थना के विना हो हमे मरते से नहीं मृत हो जाने पर जिला दिया है ! गत संख्या का अंतिम संभाषण पढ़ के और हमे फिर भी प्रकाशित देख के आशा नहीं निश्चय है कि कोई विचारवान हमारे कथनको अत्युक्ति अथवा मिण्या प्रशंसा न समझेंगे फिर भला हम उन्हे क्यों न रोम २ मे अनीसें ? पर यतः यह काम भी हमारा ही नहीं है किन्तु उन समस्त सज्जनो का जो 'ब्राह्मण' के अन्तर्ध्यान होने से दुःखित होते एवं पुनः प्रकाशित होने से आह्लादित होंगे। अतः यह भार भी हम अपने माथे से पटक कर अपने सच्चे रसिकों को यह मंगल समाचार सुना देना उचित समझते हैं कि अब हम पूर्ण रूप से निद्वंन्द हो गए अतः अपनी सामथ्यं भर इस पुनर्जीवित 'ब्राह्मण' को मेढक । प्रसिद्ध है कि मेढक गरमियो मे मर जाते हैं और वर्षा मे फिर जी उठते हैं ) को नाईटर टर करने वाला न बनावेंगे ( यद्यपि एडिटर शब्द की यह भी दुम है ) किन्तु मृत्युञ्जय मंत्र की भांति देश के शारीरिक मानसिक और सामाजिक रोग दोषादि का दूर करने वाला सिद्ध कर दिखावैगे । पर कब ? जब आप लोग भी ध्यान देके पढ़ेगे और इस के प्रचार का पूर्ण उद्योग करते रहेगे तथा समय २ पर सुंदर लेख भो भेजते रहेगे। पर खबरदार मूल्य एव साहाय इत्यादि का रुपया उपया कानपुर के पते पर न भेजिएगा, हम उसे न छुवैगे, अथवा छूते हो उडा देंगे। इससे नए पुराने खंड तथा हमारी पुस्तको की मांग और दाम मनेजर खड्ग विलास प्रेस बांकीपुर के पास भेजा कीजिए और अपने तथा हमारे लिए कोई बात पूछना भी हो तो खर कानपुर ही सही । बस खड ८, स. १ ( अगस्त, ह० सं०७)