पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५९

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बिस्फोटक रसायन विद्या से जाना जाता है कि कुछ पदार्थ ऐसे हैं जो न्यून व अधिक सभी वस्तुओं में हुमा करते हैं। जो पदार्थ बहुत ही अधिक होते हैं, जैसे जलवायु, अग्नि, वह तो हिलना, चलना, शीतलता, उष्णता, प्रकाश आदि अपने गुणों से प्रत्यक्ष ही से दीख पड़ते हैं । पर जो न बहुत न्यून न बहुत अधिक हैं, वे किसी यत्न करने से वा दैविक नियमानुसार कभी २ आप ही से प्रकट हो जाते हैं। जैसे कंडे की निर्धूम आग पर थोड़े से गेहूँ रक्खो तो थोड़े ही से काल में उनमें से एक प्रकार का तेल सा निकलेगा जो पहिले किसी भांति जान न पड़ता था, पर गेहूं में वह था निस्संदेह । कभी २ बन के सूखे वृक्ष आप से आप जल जाया करते हैं । इसका कारण यही है कि भौतिक वायु के द्वारा वृक्षों की सूखी हालियों के आपस में रगड़ खाने से उनमें की अग्नि, जो पहिले गुप्त थी, प्रकट हो जाती है। इन्हीं दूसरी श्रेणी के पदार्थों में से एक पदार्थ विष भी है जो मनुष्य और किसी २ पशु के शरीर में कुछ अधिक हुआ करता है और काल पाकर प्राकृतिक नियम के अनुसार बहुधा सभी के एक वा अधिक बार अवश्यमेव फूट निकलता है। इसी को लोग शीतला अथवा माता निकलना कहते हैं। हमारे यहां के आयुर्वेद में उसका नाम 'विषफोटक' वा विष की पुड़िया लिखा है सो सत्य भी जान पड़ता है, क्योंकि बहुधा विष वाले पदार्थों में एक रीति की चमक हुआ करती है । होरा, अहिफेन, मोरपक्ष इत्यादि जैसे एक चमक भी लिये होते हैं वैसे ही बोतला निकलने से पहिले शरीर भी सुदृश्य होता है । यद्यपि कभी २ यह रोग युवा पुरुषों को भी होता है पर बालकों के कोमल शरीर तो इस भयानक रोग के कारण असह्य क्लेश पाते हैं और कुरूप, काने, अंधे, तुतले हो जाते हैं। कभी कभी यह दुष्ट रोग प्राण का भी ग्राहक हो जाता है। आह 'नाम जिसका नहीं लेते यः वः बीमारी है।' क्यों न हमारे सदय हृदय पूर्वज इससे पीड़ित दूध के फोहों की दशा पर माता करते । अर्थात ऐसे अवसर पर पालने वाली, रक्षा करने वाली, परमेश्वर की शक्ति का स्मरण आ ही जाता है। उपाय तो इसका कुछ न कुछ सुश्रुत चर्कादिक में ही होगा पर हमारे यहाँ के वैद्यराजों को क्या पड़ी है कि अपना समय पढ़ने पढ़ाने में व्यर्थ खोवे । वैदकी क्या सभी विद्या इस देश में केवल आजीविका मात्र रह गई । इस बात के लिए सरकार को तो अवश्य धन्यवाद देंगे कि नगर नगर गांव गांव में सहस्त्रों रुपये खर्च करके टीका लगाने का प्रचार करती है। नश्तर से बांह में किंचित मात्र खरोद के, गोषन शीतला की पपड़ी (खुरंड) पिसी हुई पोड़ी सो