पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/६१

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हिम्मत राखो एक दिन नागरी का प्रचार होहीगा सच है "परमेश्वर की परतीत यही, मिलो चाहिये ताहि मिलावत है"। जिस मागरी के लिये सहस्रों रिषि वंशज छटपटा रहे हैं उसका उद्धार न हो, कहीं ऐसा भी हो सकता है ? जब कि अल्प सामर्थी मनुष्य को अपने नाम की लाज होती है तो क्या उस सर्वशक्तिमान को अपनी दीन बंधुता का पक्ष न होगा ? क्यों नहीं । हमारे देशभक्तों को श्रम, साहस और विश्वास चाहिए, हम निश्चयपूर्वक कहते हैं यदि हमारे आर्य भाई अधीर न होंगे तो एक दिन अवश्य होगा कि भारतवर्ष भर में नागरी देवी अखंड राज्य करेंगी और उर्दू वो अपने सगों के घर में बैठी कोदो दरैगी। लोग कहते हैं, सर्कार नहीं सुनती। हमारी समझ में सर्कार तो सुनेगी और चार घान नाचेगी, कोई कट्टर सुनाने वाला तो हो । यदि मनसा वाचा कर्मणा को दो सौ मनुष्य भी यह संकल्प करलें कि 'देवनागरी वा प्रचार ये सर्वस्व वा स्वाहा करिये' तो देखें तो सरकार कैसे नहीं सुनती। और सर्कार न सुनै तो कोई तो सुनेगा। कोई न सुने तो परमेश्वर तो अवश्य.. मेव सुनेगा। हमारे उत्साही वीरगण कमर बांध के प्रयाग हिंदू समाज के सहायक तो बनें। उसके सदनुष्ठान में शीघ्रता तो करें। यदि सच्चे हिंदू हों, यदि सचमुच हिंदी चाहते हों तो मन लगा के हिंदू समाज प्रयाग को अमृत वाणी सुनै तो सही । कुछ सच्चा रंग तो चढ़, तदनंतर हिंदी का प्रचार न हो तो हम जिम्मेदार । विचार हिंदू समाज: का यह है कि देश देशांतर के हिंदी रसिक प्रयागराज में एकत्र करके उनकी संमत्यानुसार यावत कार्य सिद्धि हो। किसी प्रकार प्रयत्न से मुंह न मोड़ा जाय, अर्थात् स्थान २ पर सभा स्थापित हों, लोकल गवर्नमेंट से निवेदन किया जाय । यदि वहां से सूखा उत्तर मिले तो उसो निवेदन पत्र में यथोचित बातें घटा बढ़ा के गवर्नर ज्यनेरल को भेजा जाय । वह भी निराश रक्खें तो फिर पालियामेंट की शरण ली जाय । न्याय अन्याय, दुःख सुख, सब यथावत् विदित किये जायं इत्यादि २ । इस विषय में जो कुछ धन की आवश्यकता हो उसके लिये राजा वा महाराजा, सेठ साहूकार इत्यादि सब आर्य मात्र से सहायता ली जाय । यही अपना कर्तव्य है। उस धर्मवीर सभा का यह बचन क्या ही प्रशंसनीय है एवं सर्वभावेन गृहणीय है कि 'हम लोगों को केवल यही प्रण रखना आवश्यक है कि जब तक इष्ट सिद्धि न होगी तब तक हम लोग किसी रीति से चुप न होंगे।' __क्यों प्यारे पाठकगण ! विचार के कहना, यदि पूर्ण रूप से ऐसा किया गया तो कोई भी सहृदय कह सकता है कि हिंदी न जारी होगी ? हमारी समझ में ऐसा कोई