सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय । पवन जगावत अगिन को, दीपहि देत वुझाय ॥ जहाँ देखो, जब देखो, जिसे देखो यही दृष्टिगत होता है कि नो निर्बल है वही लातों का पात्र है। कैसे ही महात्मा हों उसी पर हाथों की खुजलाहट मिटावेंगे। धर्मनीति, इंसाफ मनुष्य जाति में कथन मात्र को है। केवल खुशामदी लोग जिसको बढ़ा के अपना कुछ काम निकाला चाहते हैं उसे धरममूरत धर्मावतार इत्यादि बनाया करते हैं, नहीं तो यह गुण ईश्वर के हैं, मनुष्य बिचारे में क्यों कर हो सकते हैं। लोग वृथा मुसलमान बादशाहों को बदनाम करते हैं कि जालिम थे, परस्त्रीगामी थे, स्वार्थी थे इत्यादि । हम कहते हैं जिसने जिसको किसी बात में दबा पाया वह सदा उसके साथ मनमानी पानी करता है और जब तक उसका प्राबल्य रहता है सभी उसकी चुटकी बजाया करते हैं । जैनी बढ़े थे तब हिंदुओं के साथ कैसा बर्ताव करते थे ? उनके समय में वैदिक लोग ढूंढ़े न मिलते थे। पर किसी ने न पूछा कि अहिंसा परमोधर्मः कंठे रहे छ ? ऐसे ही आर्यों ने बढ़ती के समय जैन मियों को मार मार निकालना शुरू किया। 'धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयम्' इत्यादि परियाए धरे रहे । मुसलमानों के इतिहास में महमूद अलाउद्दीन और आलमगीर ऐसे अधर्मों को जाने दीजिए, अकबर ने राना प्रताप सिंह उदयपुराधीश के साथ क्या किया था ? मालवा के हाकिम बहादुर से कौन भलाई की थी ? लोग कहेंगे शत्रु का दमन करना नीति है। इसमें बुराई क्या हुई ? हमारा कथन है कि शत्रु वह कहाता है जो अपने धन, बल, मान तथा प्राण हानि का उद्योग करे । उससे अपने बचाव के लिये कल,बल,छल सभी कर्तव्य हैं । पर जो बिचारा अपने घर बैठा है, किसी के लेने देने में नहीं,उससे छेड़ करना जबरदस्ती नहीं तो क्या है ? पर कौन कहे ? प्रबल जाति सदा से ऐसा ही करती आई है । बिचारने का स्थान है-ऐसे ही दयावान हों तो दूसरे को वस्तु पर चित्त ही क्यों चला। फिर भला ऐसे से अपने हित की आशा करना व्यर्थ के अतिरिक्त क्या है ? कभी कही किसी जेता जाति ने जित के साथ भलाई की है ? और कैसे भलाई कर सकता है ? शास्त्र में लिखा है 'देवोदुर्बल- घातकः । तो जिस पर देव ही रुष्ट है उसका सहायक कौन ? वह बात भोर है कि अपने स्वार्थ के लिये छोटे बड़े सबके आगे बात निकालना होता है नहीं तो सौ बार भो हम मर के नहीं देख चुके हैं-'अपना नहीं होता कोई बेगाना किसी का' ? इस रामकहानी से हमें यह बात अभिप्रेत है कि हम आज पराधीन सर्वसाधनहीन हैं । चाहो कर्म का फल कहो, चाहो ईश्वर की इच्छा समझो, चाहो जमाने की गरदिश मानो, हम दूसरों की आँख देखते हैं और दूसरे लोग जैसे होते हैं इतिहासवेत्ताओं से छिपा