पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/७६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

५४ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावती हाकिम-दुखी कहता है हा! ( हाय ) तो हुजूर कहते हैं किम् अर्थात् क्या है ! अथवा क्यों बकता है। ___बकील-वकील जो सदा कलेजे में खटकै अथवा दंग भाषा में बोः 'की' (क्या है) लाओ । अर्थात् वुह तुम्हारे पास क्या है लाओ। मुखतार-जिसके मुंह से तार निकले अर्थात् मकड़ी ( जाल फैलाने वाला ), अथवा मुक्त्वारि ( मुक्ति का अरि ) जो फंदे में आवै सो छूटने न पावै । मुअक्किल-- मुभा अर्थात् मरा, किल इति निश्चयेन ( जरूर मरो)। मुद्दई-ग्राम्य भाषा में शत्रु को कहते हैं । ( हमार मुद्दई आहिउ लरिका थोरै आहिउ)। मुद्दालेह-मुद ( आनन्द ) आ! आ ! ले ! दोत ! अर्थात् आव आव मजा ले (अपने कमों का)। इजलास-अंग्रेजी शब्द है, इज is ( है ) loss ( हानि ) अर्थात् जहाँ जाने से अवश्य हानि है । अथवा ई माने यह, जला सा अर्थात् कोयला सा काला आदमी (आम में झोंकने लायक है ) । अथवा फारसी तो शब्द ही है, जेर के बदले जबर अर्थात् अजल ( मौत ) की आस (आशा) अथवा बिना जल ( पानी ) के आस लगाये खड़े रहो। चपरासी-लेने के लिये चपरा के समान चिपकती हुई बातें करने वाला ! न देने बालों से चप ( चुप )। रासी का अर्थ फारसी में हुआ 'नेवला है तू' । अर्थात् 'चुप रहु नेवला की तरह तू क्या ताकता है !' कहने वाला । अथवा फारसी में चप के माने बायर्या अर्थात् अरिष्ट के हैं (विधि बाम इत्यादि रामायण में कई और आया है ) अर्थात तू बाम नेवला है क्योंकि कोल डालता है। अरदली-अरिवत दलतीति भावः। स्त्री-(शुद्ध शब्द इस्तरी) अग्नि तप्त लोह के समान गुण जिसमें । (धोबी का एक औजार )। मेहरिया-जिसकी आँखों में मेह (बात २ पर गेना) और हृदय में रिया (फारसी में कपट को रिया कहते हैं ) का बास हो। लोगाई-जिसमें नौ गौओं की सो पशुता हो । वंगाली लोग बहुधा नकार के बदले लकार और लकार के बदले नकार बोलते हैं, जैसे नुकसान को लोकमान, निर्ला को निरनन । जोर-जो रूठना खूब जानती हो। पुरुख-पुर कहत हैं जेहमें छेतु सोचा जाय और ग्व आकाश ( संस्कृत में ) अर्थात् शून्य । भावार्थ यह हुआ कि एक पानो भरी खाल, जिसके भीतर अर्थात् हृदय में कुछ न हो । 'मूर्खस्य हृदयं शून्यं' लिखा भी है। ____ मनसवा-मन अर्थात् दिल और शब अर्थात् मुरदा ( आकारांत होने से ब्रीलिंग हो गया) भाव यह कि बी के समान अकर्मण्य मुरदादिल, बेहिम्मत । मद-मरदन किया हुआ, जैसे लतमदं ।